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__ अर्थ-ज्यारे जे कोई जेनुं मांस खाय छे त्यारे ते बंनेनो अंतर जुवो, तो खानारने पेट भरवा जेटलो क्षणिक हर्ष थाय छे ने बीजाना प्राण जाय छे. ॥ १३२ ॥
सूत्र १२ मर्तव्यमिति यदुःखं पुरुषस्य प्रजायते
शक्यस्तेनानुमानेन परोऽपि परिरक्षितुम् ॥ १३३ ॥
अर्थ-पुरुषने मरणसंबंधी जे दुःख थाय छे ते अनुमानथी अन्य प्राणी तारण करवा योग्य छे ॥ १३३ ॥ आ उपरना बे श्लोक विष्णुशर्मा ए कहेल छे-वळी पण श्रीमहाभारतांतर्गत अनुशासन पर्वना ११५ तथा ११६ मां कहेल छे के
सूत्र १३ प्राणा यथात्मनोऽभीष्टा भूतानामपि वै तथा
आत्मौपम्येन मंतव्यं बुद्धिः कृतात्मभिः ॥ १३५ ॥
अर्थ-जेम पोतानां प्राण पोताने प्रिय छे तेम प्राणियोने पण हशे एम पोतानी उपमा वडे बुद्धिमान् ज्ञानिओए विचार, ॥ १३५ ॥
सूत्र १४ स्वमांसं परमांसेन यो वर्धयितुमिच्छति ॥ नास्ति क्षुद्रतरस्तस्मात् स नृशंसतरो नरः ॥ १३६ ॥
अर्थ-जे पारका मांसे करी पोताना मांसने वधारवा इच्छे छे तेनाथी वधारे कोई अधम नथी ने जे अतिक्रर छे. ॥ १३६ ॥
सूत्र १५ न हि प्राणात्प्रियतरं लोके किंचन विद्यते . तस्माद्दयां नरः कुर्याद्यथात्मनि तथा परे ॥ १३७ ।।
अर्थ--जगतमा प्राणथी अधिक प्रिय बीजं कई नथी माटे मनुष्ये पोतानी पेठे बीजानी उपर दया राखवी. ॥ १३७ ॥
- सूत्र १६ प्राणदानात्परं दानं न भूतं न भविष्यति न ह्यात्मनः प्रियतरं किंचिदस्तीह निश्चितम् ॥ १३८॥
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