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________________ अर्थ--प्राणदानथी बीजं श्रेष्ठ दान थयु नथी तेम थशे पण नहीं. केमके लोकमां आत्माथी अधिक प्रिय बीजु काई नथी ए निश्चय छे. ॥ १३८ ॥ सूत्र १७ अनिष्टं सर्वभूतानां मरणं नाम भारत ॥ मृत्युः काले हि भूतानां सद्यो जायति वेपथुः ॥ १३९ ।। अर्थ-प्राणिमात्रने मरण अप्रिय छ कारण मरण समय तैमने तत्काल कंप थाय छे. उपरना १३५ थी ते १३९ सुधीना श्लोक महाभारतमां छे. हवेथी चाणाक्यनीति लघुचाणाकयना लघु अध्यायनो श्लोक ५ मो. त्र १८ धर्मस्य मूलं राजानस्तपोमूलं ऋषीश्वराः॥ ऋषीशा यत्र पूज्यंते तत्र धर्मः सनातनः ॥ ५॥ अर्थ-धर्म- मूळ बीज राजाओ छ, तप, मूळ ऋषिओ छे; जहां ऋषीश्वरनी साधुनी : नता होय ते स्थळ सनातन धर्मनुं स्थान समजवं. सूत्र १९ राज्ञे धर्मिणि धर्मिष्टाः पापे पापा समे समाः॥ लोकास्तदनुवर्त्तते यथा राजा तथा प्रजाः॥६॥ अर्थ-राजा धर्मी होय त्यां प्रजा पण धर्मिष्ट होय. राजा पापिष्ट होय छे ते प्रजा पण पापी थवानो संभव थाय छे तुल्योतुल्य होय छे. सेवक राजाना वर्तणुक प्रमाणेज चाले एवो सदैव नियम छे जेवो राजा तेवीज प्रजा थाय छे. ॥६॥ हवे श्री महाभारतना अनुशासन पर्वना ११६ मा अध्यायमां कह्यु छ के सूत्र २० अहिंसा परमो धर्मस्तथाहिंसा परो दमः ॥ आहिंसा परमं दानमहिंसा परमं तपः॥ १४४ ॥ अर्थ-अहिंसा ए उत्तमधर्म, उत्तमदान, उत्तमदम, तथा उत्तमतप छ. ॥ १४ ॥ बळी विष्णुशर्माए की छे के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034575
Book TitlePashu Vadhna Sandarbhma Hindu Shastra Shu Kahe Che
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year
Total Pages309
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationBook_Gujarati, Book_Devnagari, & Book_English
File Size24 MB
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