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________________ ८९ हां तब जगत कछु नहीं भासेगा. यह जगतके गुणदोष आपने शिर क्यौं मानता है. सूर्यवत् अलिप्त रहो. हे राजा, अंतरते भाव पदार्थकी आस्था लक्ष्मीकुं त्यागकर, और बाह्य लाकर ते बिचारना अन्तर के अकर्ता पदमें स्थित होना. ये राजादि सर्व मनुष्य वा स्त्रियादिकोंका मुख्य कर्तव्यकर्म है. इस कर्तव्यकर्मसे जो आत्मतत्वमें स्थित हुवा है उसने वेद वा भगवद्गीतादि सत्य शास्त्रोंकी आज्ञा उल्लंघन करी ऐसा नहीं बनता. तिस आत्मामें जो स्थित हुवा है अर्थात् सत्यस्वरूपकं जो पाया है और जो ऐसे स्वरूपकुं नहीं पाया, सो कछु नहीं पाया. हमकुं ज्ञानकी वार्ता करते ज्ञानवानकुं देखी करी लज्जा कछु नही आती है राजा, जो तीस ज्ञानकी वार्ता तेभी मुख्य हैं और यद्यपि महाबाहो होवे तोभी गर्दवत् है. और जो बडे ऐश्वर्य करी संपन्न होवे और आत्मपदते विमुख हैं तिनकुं विष्ठाके कीटसे भी नीच जाण ये सिद्धान्त है. हे राजा हमने ईतनी समज दी है.! सो कछु अर्थकी उपेक्षा करी नहीं दी है कवल तेरेपर कृपा करके दी है सो दत्तचित्तसे अर्थ ग्रहण करना और जो यथार्थ न जाननेमें आव तो सन्तजनकुं शरण जाकर समझ लेनाऔर शांत स्थित उदारसम संयुक्त रहेना. समाप्त. 'उपरके सात प्रश्नों के उत्तर सिद्धान्त ठैरे तो इसका इनाम जो आपके नगर में ब्रह्मनिष्ठ अद्वैतज्ञानीका मठ होवे. उसकुं हमारे तरफसे देना और हमकुं उत्तर भेजना और जो उत्तर सिद्धान्त न ठरे तो नीचे लखेला हुवा सारासार विचारके अर्थका ग्रहण करना हिंसा के वादमे हमारा जो सिद्धान्त है, सो प्रश्नोंके उत्तरे यथार्थ कया है येही सत्य है. अब विश्राम लेता हूं. 2 J हमारा ठेकाणा ब्रह्मांडरूपी खपर है सो अनंत है. लेकीन उसमे जो जंबूद्वीप हैं, उसमें कोई अंशमें मुंबई इलाखा होई, उस इलाखेके अंक अंशमे नाशिक जिल्हा है, उस जिल्हेके अंकअंशमें येवला तालुका है, उस येवलेमें एक तरफकी गल्लीमें रहेते है. नाम गुरु धनानंद इनके शिष्य रजपूत शंकरासँग छट्टुसिंग ऐसा देहका नाम है. शंकरसिंग छट्टुसिंग. १२ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034575
Book TitlePashu Vadhna Sandarbhma Hindu Shastra Shu Kahe Che
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year
Total Pages309
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationBook_Gujarati, Book_Devnagari, & Book_English
File Size24 MB
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