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पुराधीशको विजयदशमी आदि उत्सवोमें महिष, बकरूं आदि दीनपशु न मारने वा मरवाने चाहिये. महाराजाको चाहिये किं महिषादि गरीब पशुकों अभयदान देवे, और धर्मपुरमें महिषादिके मारनेसे जीव मनुष्योको मांसादिसे किसी प्रकार, दूध भक्ष्य उपलब्ध होता है तो महाराजको चाहिये कि उन मनुष्योको उसके बदलेमें उससे अधिक मोदकादि उत्तम भोज्य विजयादशमी आदि उत्सवोंमे देवें. अभयदान देनेसें महाराज इहलोकमें पुण्यात्मा कहाकर उस लोकमें अवश्यमेव सुखके भागी हो बेंठो-जब धर्मपुरमें पशुवध बन्ध होजायगा तब धर्मपुर नाम यथा नाम तथा गुणबाला होगा. यदि कोई पंडित इस विषयमें शास्त्रार्थ करना चाहेतो हम शास्त्रार्थ करनेको बद्धपरिकर है किं बहुना.
राज्ञोऽमात्यवर्गस्यचेष्टचिन्तको-भीमसेनशर्मा,
मु. प्रयाग.
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