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न. १६. धोराजीवाला पारेख, पोपट मोतिचंदनो अभिप्रायः
धोराजी तारीख १८ सप्तेम्बर १८९४. सदा महेरबान राजमान्य राजश्री प्राणजीवनदास वि० जगजीवनदास महेता. धर्मपुरना चीफ मेडीकल ऑफीसर साहेब मु० धर्मपुर धोराजीथी ली. शा. पोपट मोतीचंद तथा वकील जगन्नाथ वाशणजीना यथायोग्य घणा मान्यनी साथे कबुल करशो.
लखवाने घणी खुशी उपजे छे के ता. १८ सप्टेम्बर १८९४ ना मुंबई समाचारमा आपनी आगेवानी निचेनो एक आर्टिकल अमारा वाचवामां आव्यो तेमां दशरा बलेव विगेरे तहेवारने दिवसे धर्मपुरमां देवीने के देवने भोग आपवा माटे पाडा बकरा ने बीजा प्राणीओनो वध करवामां आवे छे. ते शास्त्रविहीत छे के निषेध छे. ते बाबत सात सवालों काढी तेनो विद्वानो पासेथी खुलासो मेळववानी इन्तेजारी राखेली होय एम जणाय छे. अमो आशा राखीए छीए के, आवा साहसीक काममां आपने पूरता खूलासा मली जशे. वखत घणो थोडो होवाथी अमे अमारी उमेदमां संकोचाईने पण जगाववानी रजा लईए छीए. आपना तरफी थएला सवालोमांथी ३ त्रीजा सवालनो खुलासो आपवानी अमो अमारी अल्पबुद्धि प्रमाणे घणी अगत्यता जोईए छीए. देवी देवने नामे हिंसा करवानी रूढी जुनी बुद्धिना भोछी समजणवालाए चलावी होय एवा वामीमार्गीओए अर्थनो अनर्थ करी आ रस्तो चलाव्यो छे. आपना सवालमांनो त्रीजो सवाल नाचेप्रमाणे छे.
ते शास्त्र करतां पण जे शास्त्रनुं प्रमाण वधारे बलवान् गणातुं होय एवां कोई शास्त्रमा ते हिंसानो निषेध कर्यो छे के केम ?
आतो जगत् प्रसिद्ध छे के, भागवत ए प्रमाण करवा योग्य शास्त्र छे. तेथी बीजा कपोलकल्पित पुस्तकोना मुकाबलामां प्रमाण करवा योग्य गणाय नहीं. वळी वेदनुं प्रमाण सर्वोपरी गणाय छे. विष्णुवावा ब्रह्मचारी नामना महान् विद्वान् अनुभवी मुक्त पुरुषे वेदोक्त धर्मप्रकाश नामनो एक ग्रन्थ लोकहितार्थे वाहार पाड्यो छे. जेना १८६ मे पाने नवमी कलममां दर्शान्युं छे केःपुरुषं वै देवाः पशु मालभंत तस्मादालब्धान्मेष उदक्रामत् ॥ सोऽश्वं प्राविशत् तस्मादश्वोभवदथैनमुरक्रांत स किं पुरुषोन्नवत्
रुग्वेदनी आश्वलायन शाखाना बीनी पंचिका महिला पाठमा खंउमा लप्यु छ केउपरना लोकनो भावार्थ-घोडा, उंट, गाय, बोकडो, सरभ, भर्ग हमादि सर्व पामो
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