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अर्थ :- हे राजन् ! जे पुरुष प्रथम तो मने करीने पछी वाणीथी पछी देहे करी पछी कर्मे करीने जे मांसने नथी खातो ते अनेक प्रकारना संसारना दुःखथी मूकाय छे. ने सुख पामे छे. तेथी मांस भक्षण न करवुं.
न हि मांस तृणात् काष्ठादुत्पलाद्वापि जायते जंतुघाताद्भवेन्मांसं तस्माद्दोषापि भक्षणे
अर्थः- हे राजन्! मांस खडथी उत्पन्न नयी धतुं तथा काष्ठथी उत्पन्न थतुं नथी तथा पाषाणथी थतुं नथी. मांस तो जंतुभोना घातथी थाय छे. माटे मांस भक्षण विषे मोटो दोष छे.
ऋषिभिः संशय पृष्ठो वसुश्चेदिपतिः पुरा
अभक्ष्यमपि मांसं सप्राह भक्ष्यमिति प्रभो ॥ १४ ॥ आकाशात् पतितः सद्यो भूमौ स नृपातस्तदा एतदेव पुनश्वोक्ता विशेषे धरणीतलम् ॥ १५ ॥
भावार्थ : – हे समर्थ युधिष्ठिर राजा - पूर्वे विश्वतनामे इंद्र थयो तेणे पशुओनी हिंसायुक्त यज्ञ करवा प्रारंभ कर्यो हतो. ते यशस्थानमां महात्मा सनकादिको आवी चड्या. ते महात्माभोए इंन्द्रादि देवगणाने कहयुं के हिंसायुक्त यज्ञ करवानी वेदमां मनाई छे. अने तमो -देवता थईने हिंसामय यज्ञ करीन मांस भक्षण करोछो. ते तमोने घटतुं नथी एवी रीते ऋषिनो ने देवगणोनो विवाद चाम्यो ते वखतमां चेदी नगरीनो राजा चरववसु महा धर्मवान् त्वां आवी पहोच्या. त्यां भाषिमहात्मा भए कहयुं के हे राजन् - अमारो ने आ देवताभोनो संवाद तेमां तमो मध्यस्थ थाभो भने यथार्थ कहो. त्यारे वसुराजाएं इंद्रने पक्षपाते करीने कह के वेदमां हिंसामय यज्ञकरीने मांस भक्षण करवानुं कहयुं छे. एवं असत्य वचन बोलतां तत्काल आकाश थकी पृथ्वीमां पडयो व्यारेवली वसुराजाने माहात्माए कहयुं के साचुं तुं बोल. मारे ते राजा प्रथमनी पेठे बोल्यो. एटले तुरत पृथ्वी फाटी एटले ते वसुराजा पाताळमां पच्यो ने महदू दुःखने पाम्यो. एवी रीते पशुने मारीने मांस खावुं आटलं बोल्यो तेथी पातालमां पडयो. माटे जे पशुनो बध करे ने मांस खाय तेने पाप लागेछे माठें पशभो मारना नहीं ने मांस खावुं नहीं. ए श्रुतिमां तथा स्मृतिमां सिद्धांतछे.
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पारेल, बनेचंद पोपट सोति चंद, मु० धोराजा.
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