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पशुने मपञ्च मारवा
बाल विगेरे नैवेद्यादि द्वारा अज्ञानि जन मांससारं पशुने मारी नांखे छे. ते नरक भागी थायछे.
पुराणवचनानि श्रीमद्भागवते हिंसा विहाराह्यालुब्धाः पशुभिः स्त्रसुखेच्छया
यजंते देवतायज्ञैः पितृभूतपतीन् खलाः अर्थ-हिंसा करवामां जेने प्रीति छे अने मांस खावामां घणा लोलुब्ध छे तेओ यज्ञ नैवेदादिके करीने यज्ञमां होमे छे अने देवता अने पितृ भूतनुं बानुं काढी पशुनी हिंसा करेछे.
__ वृत्यै परं नंति पशूनतद्विदः पशु मारवामां मोटो दोष छे एम विचार न करनारा पोतानी वृत्ति चलाववा पशुने मारेछे.
नारदपंचरात्रे श्रुतिर्वदति विश्वस्य जननी व हितं रुषा । कस्यापि द्रोहजनकं न वक्ति प्रभुतत्परा ॥ हिंसाविधिस्तु हिंसाया निवृत्त्यार्थोस्ति सर्वदा ॥
आत्मवत् सर्वभूतानि तेन पश्येच्च नान्यथा ॥
अर्थ-श्रुतिछे ते जगनी माता छ ने ते सौनुं हीत करनारी छे. ने कोईने पण द्रोह करती नथी जे हिंसाना विधिनी श्रुति आपणने हिंसा नही करवानो अर्थ बतावे छे. जेमके जेवो पोतानो आत्मा वहालो छे, तेवी सघला प्राणी उपर दृष्टी करवी आ विगेरे निषेधोनां घणां वचनो छे. पण ग्रंथर्नु महत्व थवाथी लख्यां नथी.
प्रश्न ४ थो. उत्तर-राजाए देवीने महानवमीने दिवसे हिंसा करी बलिदान दे, ए वेदोक्त अवश्य कर्म नथी. कर्म त्रण प्रकारनां छे. नित्य-नैमित्तिक अने काम्य ते न करे तो शास्त्रनी आज्ञा तोडी गणाय ने तेमा दोष पण छे माटे जरुर नित्य करवा. तेम नैमित्तिक कर्म पण अवश्य करवां पण स्मृति श्रुति विहित करवां, पण वाममार्ग शास्त्रनां प्रमाणवाला तथा पुराणमां कहेलां हिंसावाला काम्यकर्म महानवमीने दिवसे बलिदान निमित्त पशुवध विगैरे
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