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के. कारण जीवो मरण थकी भय पामेला होय छे. सर्व प्राणीओने पोताना जेवा जाणवा, सर्वने जीवित वाहलु होय छे.. ____ यमकिंकर संवादने विषे यमनुं वचन आप्रमाणे छे. न चलति निजवर्णधर्मतो यः, सममतिरात्मसुहृद्विपक्षपक्षे । न हरति न च हन्ति किंचिदुच्चैःस्थिरमनसं तमवेहि विष्णुभक्तम् ॥ विमलमतिरमत्सरः प्रशान्तः, शुचिचरितोऽखिलसत्वमित्रभूतः। प्रियहितवचनोऽस्तमानमायो वसति सदा हृदि तस्य वासुदेवः॥
अर्थ-जे पोताना आत्माना धर्मथी चलायमान थतो नथी जे पोताना मित्रोपर अने शत्रुओपर समभाव राखे छे,. अने जे कोइनुं कई हरतो नथी अथवा कोइने हणतो नथी तेने स्थिरमनवालो अत्यन्त विष्णुभक्त जाणवो. जेनी बुद्धि निर्मल छे, जेमां मत्सरनो अभाव छे, जेनो स्वभाव शान्त अने चरित्र पवित्र छे, जे सर्व भूतोपर मित्रभाव राखे छे, जेनुं वचन प्रियकर अने हितकारी छे अने जेनामां मान तथा मायानो लेश नथी, तेनां; हृदयमांज विष्णु निरंतर वसे छे. हवे विशेष प्रमाणोथी जणाववा के--
प्राणिनः सुखमीहन्ते विना धर्म कुतः सुखम् । दयां विना कुतो धर्मः तस्मात् तत्र रतो भव ॥ कृपानदीमहातीरे सर्वे धर्मास्तुणांकुराः। तस्यां शोषमुपेतायां कियन्नंदन्ति ते चिरम् ॥
प्राणीमात्र सुखनी इच्छा राखे छे. परन्तु धर्म विना सुख क्याथी. अने दयाविना धर्म क्याथी! माटे ते दयामांज लीन था. कृपारूपी महानदीने कांठे सर्वे धर्मो तृणांकर रूप छे. जो ते महानदी सूकाई जाय तो ते तृणांकुर केटलीवार टके ? मतलब के दया मई तो धर्म गयो.
हे सन्मित्र.-अमे उपर. दिग्दर्शन करेला वास्तविक आधार साथे निवेदन करेली हकीकतनुं यथार्थ अवलोकन करी, आर्यशास्त्रोने मान आपी स्वतंत्र विचारने अमलमा लावी अपना महाराजाए आत्मानुं कल्याण करवा अने विद्वानोनो प्रयास सफल करवाजातस्य कूपोयमिति ब्रुवाणाः क्षारं जलं कापुरुषाः पिबन्ति, कुपुरुषो आ अमारा बापनो
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