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________________ भने सूक्ष्मज्ञान उपर ध्यान आप्या वगर धर्म, अर्थ, काम न जणाय तो मोक्षपद तो क्याथीज मळे. आजकालना द्विजो पोतपोतानुं खरूं कर्तव्य पण जाणता नथी, कारण के उपदेशक जे ब्राह्मण छे ते पण विद्यारहित थई गया. आम थवानुं कारण एटलुज छे के पूर्व ब्राह्मण लोकोनों निर्वाह राजा के पोताना यजमान चलावता हता त्यारे ब्राह्मणो एक स्थले बेसी तमाम धर्मशास्त्र भणीने जिज्ञासुओने घटतो बोध आपता.. तेज प्रमाणे क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र पोतपोताना धर्ममा प्रवर्तता हता. अने ते दिवस केवा सुखी हता ते पुरातनी इतिहासो वांचवाथी मालम पडशे तेमां मुख्य करी आहारना पदार्थोमां फरक थयो ते नीचे प्रमाणे श्लोकथी कहेवामां आवे छे-गीतानो अध्याय १७ मो. कच्चाम्ललवणात्युष्णतीक्ष्णरुक्षविदाहिनः। आहारा राजसस्येष्टा दुःखशोकामयप्रदाः ॥९॥ शब्दार्थ-( अति ) कडवा, खारा, खाटा, उना तीखा लूखा अने दाह करनार तथा दुःख शोक अने रोगने करनारा एवा जे आहारो ते राजस कहेवायछे. आ उपरना आहारोनुं बहुज सूक्ष्म (घणाज थोडा ) पणे ग्रहण करवू जोइए. तेना बदलामां अतिशय हद उपरांत खावा लाग्या, त्यारे वीर्य अति उष्णता पामी गयुं जेथी भोग वासना वधी जेथी शरीरमांनी नाडी जड थई पडी अने स्वच्छ अन्तःकरण हतुं ते बंध थई गयु. अने जे ज्ञानइन्द्रिय हती ते कर्मेंद्रियने ताबे थई तेथी शरीरमां कुदरते चैतन्यनो घटाडो थयो अने उंघ आलसमां वधारो थयो जेथी स्वधर्म कर्ममां अभाव आवी पहोंच्यो ने प्रमादथी कर्मनो लोप करी नांख्यो. जेवू धर्मरुपी तुंबडं भवसागर तरवानुं हाथमांथी गयुं के तरत तमोगुणरुपी मोजाओए ते प्राणिने घेरी लीधो ने अहींथी तहीं अथडावा मांडयो. जेथी पोतानुं शरीर पोताना हाथमा रघु नहिं. एटले सात्त्विकवृति, संतोष पणुं, अद्रोह, ब्रह्मचर्य, अहिंसा, क्षमा, दया, विगैरे जे आ शरीरने सुख उपजावनार साधनो तेनो नाश थयो. एटले संतोष वृत्तिथी रहित मन विषय वासनामां अनेक प्रकारे अनेक स्त्रीओ आदिमां चोटवा लाग्यु. जुठापणु, अनहद द्रव्य मेलववानी ईच्छा, दयाथी रहितपणुं, सुस्ती, मिथ्या भाषण करवामां तथा स्वार्थ साधवामां मंड्या रहेवा पणुं, अने अंतःकरणमांथी ईश्वरनो अभाव आववा लाग्यो, एटले मतलब ए के वखते ईश्वरने बीजा लोकना देखतां संभारे; ते लोकने देखाडवा माटे. त्यारे उपरना कहेवा प्रमाणे भाहारमाथी पायरी उतरती जोवामां आवे छे केमके धर्मसंबंधी ज्ञान तेनें कोई रहेतुं नथी. ... एटले स्त्री, द्रव्य भने खास पोतानी मतलब साधवामांज तत्पर थयो. · एटले ज्यारे दुःख प्राप्त थाय त्यारे तामसी देवोनुं इष्ट करवा मांडे अने मानताओ करे, के “ मने अमुक वस्तु प्राप्त थायं तो अमुक देव [ भूत, प्रेत, पिशाच, मातृकादि विगेरे ] ने अमुक जातीनो जीव बलीदानमां आपीश," आवी रीते मोहथी अन्ध थयेलो मनुष्य स्वकर्मनो त्याग करी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034575
Book TitlePashu Vadhna Sandarbhma Hindu Shastra Shu Kahe Che
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year
Total Pages309
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationBook_Gujarati, Book_Devnagari, & Book_English
File Size24 MB
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