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मांथी एक मासमां छूटो थायछे. ॥ ७९ ॥ ब्राह्मण, क्षत्रिय अने वैश्यमांथी जे कोई गायत्रीनी जप त्याग करेछे; अने यथाकाले पोतानी क्रिया करतो नथी तेनी सारा माणसोमां निंदा थायछे माटे गायत्रीजप अने स्वकर्मनो त्याग कदापि करवो नहि ॥ ८७ ॥
प्रमादथी संध्या वंदनादि करता नथी तेनी गति श्रीमरीचिरुषि नीचे प्रमाणे कहेछे.
संध्या येन न विज्ञाता संध्या येनानुपासिता । जीवमानो भवेच्छूद्रो मृतः श्वाचाभिजायते ॥
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भावार्थ- जे द्विजे संध्या जाणी नथी अने संध्यानी उपासना करी नथी ते द्विजने जीवतां शूद्र जाणवो अने मुआपछी ते कूतरो थायछे. श्री दक्ष नीचेना श्लोकथी कहेछेके संध्या वगरनो द्विज सर्व धार्मिक कर्ममां काम आवतो नथी.
संध्या हीनोऽशुचिर्नित्य मनः सर्वकर्मसु । यदन्यत्कुरुते कर्म, न तस्य फलभाग् भवेत् ॥
भावार्थ - जे द्विज संध्याहीन छे, ते नित्य अपवित्र छे. तेथी सर्व कर्ममां ते द्विज काम आवतो नथी ने ते बीजुं धर्म संबंधी कांई काम करे, तो तेनुं फल ते द्विजने कांई मळतुं नथी.
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हवे उपरना श्लोकोथी एवो भावार्थ खुलो समजाशे के, सर्व द्विजने उपनयन संस्कार तो अवश्य थवो जोईए. त्यार पछी संध्यावन्दनादिक होम अने गायत्रीनो जप यथाविधि करवो जोईए. अने जेओ प्रमादथी करी शकता नथी तेओ अशुद्धभावने पामी नरकमां पडेछे. माटे पोतताना अधिकार प्रमाणे द्विजे कर्म अबश्य करवां ते बहुज उत्तम कहेवाय छे.
छठ्ठा श्लोकमां एवं कहेवामां आवेल छे के, गायत्री महापातकमांथी मुक्त करे छे. त्यारे गायत्रीनो अर्थ तथा तेना मंत्रनो अर्थ जाणवो जोईए. गायत्री एटले गाय +त्री = गानार यथाविधि जप करनार, ने त्रीनाम पापथी तारे छे माटे ते गायत्री कहेवाय छे. अने तना मंत्रनो भावार्थ एवो छे के आ लोक तथा परलोकना जे प्रकाश करनार एवा जे ब्रह्ममयी सूर्य, ते अमारी बुद्धिने धर्म, अर्थ काम अने मोक्षमां प्रेरेछे, कारण के है सूर्य ! अमो तमारुं निरंतर ध्यान करीए छीए. माटे अमारा आ जगतने विशे कयां कयां कर्तव्य अमारे करवानो अ-धिकार छे ते बतावो . त्यारे जेम सोय पासे चमकपाण धरवाथी जेम पोतानी मेलेज सोप खेंचाई चमकपाणने चोटे छे तेमज आ गायत्री जप तथा संध्यावंदनादि कर्म करवाथी अंतःकरणनी शुद्धि थाय छे, त्यारेज धर्ममां अंतःकरण प्रवर्ते छे, अने तेथी अर्थ झुं साधवो, तथा काम कर्तुं तेवा सूक्ष्म विचार कर्याशिवाय सूक्ष्मज्ञान पण थतुं नयी.
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