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________________ १११ प्रसिद्ध देखनेमें नहीं आइ अतेव वेदार्थका केसे निश्चय हो. ( यह एक अंग व्याकरणका तपासहे) अतेव जबतक सत्यवक्ता विद्वान तथा सत्ताधारीकी मंडली होकर एक अर्थ निश्चित न होवे वहांतक हम वेदके मंत्रोंकी भी साक्षीमें देना नहीं चाह दूसरे ग्रंथोंकी तो वातही क्या ( शंका ) अष्टाध्या इमें पूर्व प्रचलित व्याकरणका अंतर तथा भिन्नत्व जनाया है. इसीसे सिद्ध होता हे के संस्कृत भाषाका मूल वेद उस बेदके काल पीछे संस्कृत भाषामें फेरफार हुवात्तभी लौकिक संस्कृतका व्याकरण कितनेक भागमें भिन्न पड गया है, यदि एसा न होता तो दोनोंका शबोका एकही व्याकरण होता अतेव फेरफार स्पष्ट हे. (शं.) वेदके पीछे वेदसे अत्यंत समीप कालमें “ मनुस्मृति " ग्रंथ बना हे उसके दाखले देने योग्य हे (उ० ) यद्यपि मनुस्मृति के अध्याय ५ श्लोक ४५ से ५१ तकमें ऐसा स्पष्ट लिखा हे "अनुमंता विशसिता" इत्यादि श्लोक.५१ जीवके मारने में सलाहकांरी, मारनेवाला, मांस वेचनेवाला, मांस लेनेवाला, मांस पकानेवाला, मांस खानेवाला इत्यदि घातकी पापीहें" इत्यादि प्रकारके दाखले हे तथापि वर्तमान कालमें जो सर्वमान्य शिरोमाण स्मृतिकी तपास हुइ तो किसी कापीमें कितनेही श्लोक अधिक पाये अर्थात् इस ग्रंथमें स्वार्थिओने मेलझोल करदिया हे यह स्पष्ट होगया यहांतक के पूर्वापर विरोध देखवाने वाले श्लोक उसमें मिलते हैं जैसे ॥ सुरावैमल्य ॥ इत्यादि अध्याय ११ के श्लोक ९३-९४-९५ में सुराका निषेध कीया है और नमांस भक्षणे दोषो न मद्ये नच मैथुने इत्यादि अध्याय५में एसा श्लोक लिख्याहे के मांसभक्ष,मद्य पीवन ओर मैथुन करने में दोष नहीं है क्योंके मनुष्यों की स्वाभाविक उसमें प्रवृत्ति होती हे परंतु इनसे निवृत होनेमें बडा अछा फलहे अब बुध्धिमान विचार लेंगे के एसा पूर्वापर विरुद्ध लेख मनु केसे लिखता अतेव मनुस्मृतिमें घालमेल होनेसे उसके दाखलेभी हम देना नहीं चाहते तब दूसरी स्मृतियोंकी तो क्या गणनाहे. इसी प्रकार ब्राह्मणादि ग्रंथो के दाखले से उदासी नहें. यद्यपि षटशास्त्रोंमें हिंसा मात्रका निषेध हे इसमे किसीका विवाद नहीं हे ओर उनमेंसे "पूर्वमीमांसा" के कोइ सूत्रमें विवाद भीहे ओर पत्र लिखित हिंसा तो पूर्वमीमांसा में भी नहींहे. तो भी षट् शास्त्रके दाखके नहीं देना चाहते क्योंके हमतो उनके मूलपर दृष्टि डाल रहे हैं. तेसेही पत्र लिखित हिंसा पूर्वोक्त कोई भी ग्रंथमें नहीं हे तो भी उनके दाखले देना नहीं चाहते क्योंके ग्रंथोमें घालमेल होनेसे उनके वेद मूलपरही हमारी दृष्टि है. यद्यपि पत्रलिखित हिंसा वेदमें भी नहीं हे यदि होती तो पूर्वोक्त किसीके भाष्यमें तो चर्चा होती सो तो नहीं है इसलिये एसा कहनेमें दूषण नहीं है किंतु यथार्थ हे के "वेदमे पत्रलिखित हिंसाका विधान नहीं हे" तथापि अर्थ के विवादसे सर्व हिंसा अहिंसा बाबत हम वेदके मंत्र साक्षीमें नहीं देना चाहीए. परंतु इतनी प्रतिज्ञा करसकते हैं के पत्रलिखित हिंसा वेदमें जो सिद्ध करनेको तैयार होतो शास्त्रार्थ करनेको उद्यत होकर नियम बांधकर शास्त्रार्थ करे. पूर्वोक्त प्रकारसे पत्रलिखित प्रश्न ही नहीं बनते वेसेही प्रश्नोंका उत्तर ही लिखने योग्य नहीं इतना विषय यहांतक आचुका अतेव पूर्व लेखपर दृष्टि डालते हुए पत्र लिखित ७ प्रश्नों के मुकाबले पर यह लखना बस है: Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034575
Book TitlePashu Vadhna Sandarbhma Hindu Shastra Shu Kahe Che
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year
Total Pages309
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationBook_Gujarati, Book_Devnagari, & Book_English
File Size24 MB
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