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नं. २१ स्वामि आत्मानंदजीनो अभिप्राय.
रा. रा. प्राणजीवनदास जगजीवन धर्मपुर.
स्वामि आत्मानंदनीना आशिर्वाद. विशेष लीखवेमें आते हे के हिंसा नहि करवी एसा सात प्रश्न तुमने पुछये हुवेथे इसका जुवाब यथामति लिखवेमें आये हे सो मान्य करेंगे, तुमेरा कागज हमने ता. ७-९-९४ का छपा हुवा मिलाथा सो उत्तर लिख्या हे. “केटलाक राज्योमा दशेरा वगेरे पर्वोपर देवी के देवने भोग आपवाना निमित्तथी पशुवध थतो अने थाय छे ते वात शास्त्रोक्त छे के केम" ए वगेरे ये निर्णय वास्ते कितनेक प्रश्रो लिखे हैं. सदरहु विषमये नीचे लिखे अनुसार उत्तर लिखताहुं विदित होके "मूलं नास्ति कुतः शाखा" इस वाक्य समान उक्तपत्रलिखित प्रश्न हे अतेव उनके सविस्तर उत्तर लिखनेमें समय गंवाना व्यर्थ समजता हूं अर्थात् जो राजा लोग देवि या देवके सामने पाडा बकरा विगेरे की हिंसा करते हैं वहां प्रथम यह विचारना उचित हे के वोह पथ्थर ओर मनुष्य घडत मूर्ति देवहे अथवा
नहीं? अथवा वोह स्वयं देवहे ? यदि वोह मूर्ति देवहे क्यों पाडाविगे रेका खून पीते हे क्यों के माडाविगेरे निरपराधी की हिंसा उसकी तृप्ति अर्थ समजी गइ हे निदान जो वोह देव सबके समक्ष खून पी लेवे उस देवका वाहन पथ्थरका बना हुआ सिंह अपना कर्तव्य (हरण वगेरे पशुको स्वयं मार डालना इत्यादि) दिखावे; उस देवकी ( में आया मनुष्या) उंगली कोटें तो कुछ परिणाम (उंग. लीमेसे खून निकले, या देव पुकारे, या देव काटनेवालैको मारे या अपनी नाराजी सिद्ध करे या अपने को देव बचावे निकले या हमारा रखाहुवा भोग खालेवे ४; वा कोइ अनुचित क्रिया उसकी सेवामें करें तब मुखसे कहे या शिक्षा दे ५. वगेरे परीक्षा हो जावें तो वोह मूर्ति या स्वयं देव किसीके मंतव्यमे देव या देवी हे" एसा मान लेंगे (क्योंके देव नाम हे विद्वान् सद्गुणी पुरुषका. हिंसा या मांस भक्षण तमगुणके अंतर गतहे अतेव उक्त खून पीनेवालेको सर्वके मंतव्यमें देव कहना अनुचितहे ) परंतु आर्यावर्तके चमत्कारीक कहवाने वाले स्वत और मंदिरोमें जाना कर परिक्षा की हे; उस देव या देवीने “ यह थोडाथोडा हे या अधिक हे यह मुझे पसंदहे यह पसंद नही हे-एसा कबी उत्तर नहीं दिया ओर न कभी भोग खाया. अतेव उस मूर्ति या स्थानको देव वा स्वयं देव नहीं मान सकते ( शं ) सत्युगमें मूर्ति परचा देतीथी अब कलयुगमें बंध पड़गयाहै और देवता चलेगये, अतेव परीक्षा उपर आधार नहीं करते ( समाधान ) जब सतयुग आवे ओर मूर्ति या देव उक्त प्रकारके परचा देवें ओर दैवत आजावे
ओर कलिकाल नाश हो जावे तभी तुमभी ऐसी हिंसा करना. अभी तो इस अनुचित्त कृत्यको बंध करो जराक एकांतमां बेठकर निष्पक्ष होकर विचारोके पथ्थरों ( शथपथ ब्राह्मण कां० १४
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