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वातनुं अकार्य थवानुं नथी. एटलुंज नहीं पण परमात्मानी प्रसन्नताथी महा सुखनी प्राप्ती थशे. एज प्रमाणे श्रीकृष्णे-अर्जुनने कयुं छे–नहि कल्याणतःकश्चिदुर्गतितातगच्छति ॥ अर्थात् कल्याणकारी काम करनारने कोइ प्रकारनी दुर्गति थतीनथी. एमज शंका थती होयके विजयादशमी विगेरे पर्वोपर हिंसा करवाथीज राज्यादिनी आबादी छे तो इतिहासथी सिद्ध थाय छे के नागपुर, सोलापुर विगेरे राज्योमा पूर्वोक्त पर्वोपर उपर्युक्त हिंसा थती ही छतां केम राज्यनुं रक्षण नहीं थयुं? माटे देशकाल प्रजाप्रियता जोइ राज्यकान्ति पूर्वक राज्य करवाथीन राजा प्रजानी आबादानी छे. हाल युरोप अमेरिकाना राजा महाराजाओ पोताना देशनी सुखाकारीने माटे एवी क्रूर क्रिया करता नथी. तेतो साम दाम दंड भेद विगेरे, कृषिव्यापार, कलाकौशल्यादि प्रजानी आबादानीना योग्य कर्तव्यो करवाथीज बुलंदीपर पहोच्यां छे. माटे राज्यनी आबादानी-राज्यनुं श्रेय ने पोतानी कुशलता इच्छनार राजा महाराजाओए योग्य युरोपनी राज्यनीतिनुं अनुकरण करवू. एज बलवान शास्त्रोनी. सम्मति छे. किंबहुना
५ प्रश्ननो उत्तर. ... घृणित पशुवधने बदले होम हवनादि षायु-जळ शुद्धि पूर्वक वैदिक अनेक क्रियाओ करवानी छे. तथा राज्य आबादानीना कार्यो करवा राज्यमाथी (महीसुरनी पेठे) प्रतिनिधिओ बोलावी सर्वानुमते देशकालने अनुसरी राज्य सुधाराना कामो करवानो आरंभ करवो विगे रे घणी शुभ क्रियाओ करवानी छे. ए करवाथी बलवान शास्त्र वेदोनी आज्ञानो भंग थयो गणाय नहीं. एवी हिंसारहित क्रियामां विधिपूर्वक हवन बराबर तो शं? पण श्रेष्ठतम श्रेयस्कर गणाय छे. एवा विषयोनां वाख्यानो वा विस्तार पूर्वक लेखो थवाथीज महत्व मालम पडे. सारांश एटलोन के एवां पर्वपर हवन विगेरे पारमार्थिक क्रिया तथा बीजी हिंसा रहित लौकिक क्रिया करवी एज बस छे
६ प्रश्ननो उत्तर. विजया दशमी विगेरे पर्वोपर पशुवध करवाने बदले नाक विगे रेने छेको मारवो ए पण युक्तिसृष्टि तथा वेदादि सच्छात्रनी विरुद्ध छे. वळी ए पण क्रूर कर्ममां गणाय छे. माटे त्याज्य छे तेथी एकदम रसातळ पहोंचेलां हिंसारूप मूलीयां न छेदातां होय तो आरंभमां छेकारूप क्रियाथी वध अटके तो तेमां मोटो दोष नथी एम विवेकथी देखाय छे. परन्तु व्याजबी जोतां छेको करी छोडवा करतां बीलकुल एवी पण क्रिया न करीए ए धर्मात्माआनो सिद्धांत छे. आ नियम साधारणने माटे छे. स्वतंत्र राजाओने माटे नथी. केमके मनुस्मृतिमां लव्युं छे के. राजा कालस्यकारणं ॥ अर्थात् सारो नरसो काल लाववो एचं कारण राजा छे. त्यारे दुष्ट रिवाज धर्म रुपे प्रसरेलो काढी नांखवो ए शी विसात छे ? पण राजा धैर्यवान-धर्मात्मा-विद्वान्-शूरवीर, सत्य निर्णयी, बुद्धिवान् , सृष्टि नियम तथा इश्वरना गुण, कर्म, स्वभावथी ज्ञानवान् होय तोज आवां कामो करी शके. एवा प्रसंगउपर केटलाक मोटा गणाता पंडितो संस्कृमतां होय तेटलुं खरुंज
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