SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ ४८ ] शुभ मुहुर्त नज़दीक निकालिये कि हमारे मनोरथ शीघ्र सिद्ध हो। सूरिजी ने भी शुभ कार्य में विलम्ब न करने को युक्ति को सोच कर अपने ज्ञान बल से " माघ शुक्ल पंचमी" का सर्वांग शुद्ध और निर्दोष मुहुर्त बतलाया । श्राद्धवर्ग ने "तथास्तु" कह कर शिरोधार्य किया। फिर तो देरी ही क्या थी लगे लोग प्रतिष्ठा की सामग्री एकत्र करने को। इधर उपकेशपुर में घर घर तो क्या पर प्रत्येक मनुष्य के हृदय में उत्साह की अजब लहरे पैदा होती दृष्टी गोचर होने लगी। उधर आचार्य श्रीकी आज्ञा लेकर जो ४६५ मुनियों ने विहार किया था उन्होंने कोरंटपुरनगर में चतुर्मास कर जनता पर बड़ा भारी उपकार किया और कोरंटपुर में श्रीसंघ की ओर से एक महावीर का नूतन विशाल मन्दिर बनवाया जिसकी प्रतिष्ठा का मुहुर्त भी माघ शुक्ल पंचमी का मुकर्रर हुआ। "तेनावसरे कोरंटकस्य श्राद्वानां श्राह्वानं आगताः भगवन् प्रतिष्ठार्थमागच्छ” कोरंटनगर के मुख्य मुख्य लोग सूरिजी को आमन्त्रण करने के लिए इस गरज से आये कि प्रतिष्ठा के सुअवसर पर आप हमारे यहां पधार कर प्रतिष्ठा करावें और उन्होंने विनय के साथ यही सूरिजी से अर्ज करी? इस पर प्राचार्यश्री ने फरमाया कि इसी मुहूर्त में यहां प्रतिष्ठाहै फिर इस हालत में मैं कैसे प्रासकूँगा । इस पर श्रावकों ने कहा कि खैर ! हम लोग तो आपके गुरुवर्य केबनाये हुए श्रावक हैं और यहां के श्रावक आपके बनाए हुए हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034570
Book TitleOswal Vansh Sthapak Adyacharya Ratnaprabhsuriji Ka Jayanti Mahotsav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpamala
Publication Year
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy