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________________ [ ४७ ] भवितव्यता पर छोड़ दी और आप अपने शिष्य समुदाय को साथ ले उस श्रीसंघ में शामिल होगये और क्रमशः चल कर घटना स्थल पर आये । बड़े ही उत्साह और भक्ति पूर्वक प्रभु महावीर के बिम्ब को भूमि से निकाला जिस के दर्शन करते ही जनता का हर्ष और उत्साह का पार न रहा । सुवर्णाक्षत का स्वस्तिक किया और नाना रत्न मणि मुक्ताफल से प्रभु को वधाया आकाश से पंचवर्ण पुष्पों की वृष्टि हुई मन्द मन्द सुगन्ध वायु चलने लगा दिशांए प्रसन्नता प्रकट करने लगी जय जय शब्द से आकाश गूंज उठा चारों ओर से बाजों का गगन भेदी नाद होने लगा । प्रभु के बिम्ब को गजारूढ करवा के बडी निजर न्योछारावल पूर्वक बड़े ही समारोह के साथ महा महोत्सव करते हुये भगवान् को नगर एवं मन्दिर में प्रवेश करवाया । महावीर मूर्ति यों तो सर्वांग सुन्दर ही थी परन्तु लोगों की आतुरता से सात दिन पूर्व भूमि से निकाल लेने के कारण उन के हृदय स्थल पर निंबुफल प्रमाण दो गांठें रह गई कहा भी है . " किंचिदुनैर्दिने निष्कासितः निम्बुफल प्रमाण हृदयस्य ग्रन्थीद्वय सहितं ।” ठीक ही है भवितव्यता किसीके टाले नही टलती । अब तो लोगों के मन मन्दिर में प्रतिष्ठा शीघ्र करवाने की उत्कण्ठा ने खूब ही जोर पकड़ा मुख्य मुख्य लोगों ने आचार्य श्री के समीप जाकर नम्रता पूर्वक अरज की कि हे प्रभो ? कृपा कर इस मन्दिर की प्रतिष्ठा का Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034570
Book TitleOswal Vansh Sthapak Adyacharya Ratnaprabhsuriji Ka Jayanti Mahotsav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpamala
Publication Year
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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