SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [.४९ ] इसलिए हम आशा ही क्यों रखें कि आप इन श्रावकों को छोड़ हमारे यहाँ पधारे। “गुरुणा कथितं मुहूर्तवेलायां श्रागच्छामि' गुरुदेव ने फरमाया कि तुम नाराज़ क्यों होते हो मैं मुहूर्त के समय वहां आकर प्रतिष्ठा करवा दूंगा, तुम सब सामग्री तैयार रखना। यह सुनके कोरंट के श्रावकों को बड़ी खुशी हुई और अपने अविनय की क्षमा मांग कर सूरिजी को वन्दन कर पुनः कोरंट नगर आये और सब तरह की सामग्री तैयार करने में जुट गये । क्रमशः माघशुक्ला पंचमी के शुभमुहूर्त में "निज रूपेण उपकेशपुरे प्रतिष्ठा कृता वैक्रिय रूपेण कोरंटके प्रतिष्ठा कृता, श्राद्धैः द्रव्यव्ययः कृतः " प्राचार्य श्री ने निज रूप से उपकेशपुर में और वैक्रिय रूप से उसी लग्न में कोरंटपुर में भी प्रतिष्ठा करवाई। (ऐसा क्यों न हो क्योंकि आपने विद्याधर कुल में जन्म लिया और आप अनेक विद्याओं के पारगामी भी थे) और दोनों महोत्सवों में श्रावक वर्ग ने बड़े ही उत्साह पूर्वक पुष्कल द्रव्य व्यय कर जिन शासन की प्रभावना के साथ स्वात्मकल्याण किया । धन्य है ऐसे लब्धि सम्पन्नाचार्यों को कि जिन्होंने मरुभूमि में जैनधर्म का एक कल्पवृक्ष लगा दिया कि जिन के मधुर फल आज पर्यन्त जैन समाज आखादन कर रहा है। इस युगल प्रतिष्ठा के समय के विषय में प्राचीन पहावलियों में उल्लेख मिलता है कि वीरात् ७० वर्ष में यह प्रतिष्ठाएँ हुई थीं यथा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034570
Book TitleOswal Vansh Sthapak Adyacharya Ratnaprabhsuriji Ka Jayanti Mahotsav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpamala
Publication Year
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy