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________________ [ ४४ ] उस समय वाममार्गियों के अखाड़े टूट जाने से उन्होंने बहुत उत्पात मचाया। बहुत लोगों को बहम में डाल कर बहकाया परन्तु जहां सूर्य का प्रचण्ड प्रकाश होता है वहां बिचारा आगिया कौन गिनती में गिना जाता है। जो शूद्र लोग अपठित और मांस मदिरा, व्यभिचारादि के कीचड़ में पड़े हुए थे वे ही लोग वाममार्गियों के पंजे में फंसे रहे। प्राचार्य देव उन नूतन श्रावकों को तात्विकज्ञान और धर्म क्रिया का अभ्यास करवाने में संलग्न थे और श्राद्ध वर्ग भी प्राचार्य देव की उत्साह पूर्वक सेवाभक्ति करने में अपने जीवन की सफलता समझने लगे। पाठकों ? अब मैं महावीर मन्दिर का भी थोडासा हाल सुना देना समुचित समझता हूँ। आप जानते ही हैं कि जहां विशाल समाज हो वहां उनके सेवा पूजा अर्थात् आत्म कल्याणार्थ मन्दिर की भी परमावश्यक्ता रहा करती है। अस्तु उपकेशपुर में महावीर मन्दिर की पाश्चर्य पूर्वक घटना इस प्रकार से हुई कि___ "पूर्व प्रेष्टिना नारायण प्रासादं कारयितुमारब्धं, स दिवसे करोति रात्रौ पतति" प्राचार्य श्री के आगमन के पूर्व उपकेशपुर में जहड़ मन्त्री नारायण का एक मन्दिर बनवा रहा था। पर वह दिन में बनावे और रात्रि में गिर जावे। इसका कारण ऊहड़ श्रेष्टिने कई दर्शनियों से पूछा परन्तु ठीक उत्तर किसी ने भी न दिया उस हालत में श्रेष्टि ने “रत्नप्रमाचार्य प्रष्टवान् भगवन् ! मम प्रासादो रात्रौ पतति । गुरुणा पोक्तं कस्य नामन कारयतः ? Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034570
Book TitleOswal Vansh Sthapak Adyacharya Ratnaprabhsuriji Ka Jayanti Mahotsav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpamala
Publication Year
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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