SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ ४५ 1 नारायण नामेन । एवं नहि महावीर नामेन कुरू मंगलं भविष्यति ।" सूरीश्वरजी से अर्ज की कि हे विभो ? मेरा मन्दिर दिन में बनाया जाय वह रात्री में क्यों गिर जाता है ? आचार्यश्री ने पूछा कि तुम मन्दिर किस के नाम का बनाते हो । मन्त्री ने उत्तर दिया कि नारायण के नाम का । सूरिजी ने अपने ज्ञानबल से सब हाल जान कर कहा कि यदि तुम महावीर के नाम का मन्दिर बनाओ तो इस में किसी प्रकार का उपद्रव न होगा और यह मंगलमय कार्य पूर्ण हो जायगा। मंत्री ने सूरिजी के वचनों पर विश्वास रख महावीर के नाम से मन्दिर बनाना प्रारम्भ किया और गुरू कृपा से किसी प्रकार का उपद्रव नहीं हुआ । मन्दिर को शीघ्र ही तय्यार करवाने का प्रयत्न होने लगा । आचार्य श्री के उपदेश से महाराजा उत्पलदेव ने भी पास की एक पहाड़ी पर भगवान् पार्श्वनाथ का विशाल मन्दिर बनाना प्रारम्भ किया । ( जो आज देवी का मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध है ) । अन्यदा चामुण्डा देवी ने आचार्य श्री के चरणों में अर्ज करी कि हे भगवन् ! इस मन्दिर के योग्य मैं पहिले से ही लूपाद्रि पहाड़ी के पास मन्त्री की गाय का दूध और वेलू रेती से महावीर प्रभु की प्रतिमा बना रही हूँ और वह छः मास साढे सात दिन में सर्वांग सुन्दर तय्यार हो जाय तब ही उन्हें निकाले पहले नहीं । मन्त्रोश्वर ने अपनी गाय का दूध कम होने का कारण गोपाल से पूछा उसने तलाश कर के कहा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034570
Book TitleOswal Vansh Sthapak Adyacharya Ratnaprabhsuriji Ka Jayanti Mahotsav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpamala
Publication Year
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy