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[ २९ ] कुव्यसनों के लिए हर तरह से निषेध किया हुआ है। वासी भोजन, रात्रिभक्षण कन्द मूलादि अभक्ष्य पदार्थों को भी सर्वथा त्याज्य बतलाया गया है। सुवा, सूतक और ऋतुधर्म का बड़ा भारी परहेज रखना बत. लाया है यदि कोई धर्म पूर्वोक्त बातों के लिए छूट देता हो तो जैन धर्म इनका बहुत विरोध करता है। जैन धर्म के उपदेशकों का खास कर्त्तव्य है कि ऐसे अधर्म कार्यों को उपदेश द्वारा शीघ्र रोके और जनता में सदाचार का जोरों से प्रचार करे। यदि कोई अज्ञानता के वशीभूत हो पतन दशा को पहुँच गया हो तो उसका पुनरुद्धार करना भी जैनियों का खास कर्त्तव्य है।
नरेन्द्र ! कितनेक अज्ञ लोग जैन सिद्धान्तों से अनभिज्ञ होते हुए भी जैन धर्म पर कई प्रकार के व्यर्थ आक्षेप किया करते हैं, वे कहते हैं कि जैन नास्तिक हैं ? जैन ईश्वर को नहीं मानते ? जैन ईश्वर को सृष्टि का कर्ता भी नहीं मानते हैं ? जीवों के शुभाशुभ कर्मों का फल ईश्वर देता है उसको भी जैन लोग नहीं मानते हैं ? जैन नग्न देव की मूर्तियों को पूजते हैं ? जैनों ने अहिंसा का उपदेश देकर जनता को कायर और कमजोर बना दिया ? जैनों ने शास्त्रश्रवणादिक का अधिकार शूद्रों तक को भी देदिया है इत्यादि अनेक कपोल कल्पित बातें कह कर जनता को भ्रम में डाल जैन धर्म से घृणा पैदा कर उनको सत्य सनातन और पवित्र जैन धर्म से दूर रखने की कोशिश करते हैं।
हे नरेन्द्र ? जैन धर्म न तो नास्तिक है और न ईश्वर को मानने में इन्कार ही करता है। पर दुःख है
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