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[ २८ ] महानुभावों! यों तो इस भूमण्डल के वक्षःस्थल पर अनेकानेक धर्म विद्यमान है, पर यह बात हम दावे के साथ कह सक्ते हैं कि सर्वोत्तम सब से प्राचीन और स्वर्ग मोक्ष प्रदान करने वाला कोई एक धर्म है तो जैन धर्म ही है। जैन धर्म का आत्मज्ञान, अध्यात्मज्ञान, तत्त्वज्ञान, आत्मवाद, ईश्वरवाद, कर्मवाद, परमाणुवाद
और सृष्टिवाद बड़ी ही उच्चकोटि का है। साधारण व्यक्ति के तो एकदम समझ में आना ही मुश्किल है। यदि ज्ञानियों की उपासना कर इनको ठीक समझ लिया जाय, तो फिर इतर धर्म तो बच्चों के खेल के सदृश ही मालुम होते हैं। जैसे जैनों का तत्त्वज्ञान उच्च दर्जे का है वैसे ही प्राचार, व्यवहार, रहन, सहन, खान पान और उदारता तथा परोपकारशीलता भी उच्च कोटि की है। तत्त्वज्ञान में स्यावाद और प्राचार ज्ञान में अहिंसापरमोधर्मः जैनियों का मुख्य सिद्धान्त है । हे राजन् ! आत्म कल्याण करने में सब से पहिले इन्द्रियों का दमन और कषायों पर विजय प्राप्त करना ही मुख्य बतलाया गया है। इस कठिन वृत्ति को वही पाल सकता है कि जिसको अपना कल्याण करना हो किन्तु संसारलुब्ध पामर प्राणी इसको धारण नहीं कर सकते हैं।
सज्जनों ! जैन धर्म किसी सामान्य व्यक्ति का चलाया धर्म नहीं है पर स्वयं परमात्मा-ईश्वर-सर्वज्ञ भगवान का फरमाया हुआ धर्म है। जैनधर्मानुयायी को मांसाहार, मदिरापान, मृगया (शिकार खेलना ) पर स्त्री संग जुआ चोरी और वेश्यागमन एवं सप्त
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