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को शिलांगाचार्य कृत टीका में लिखा है कि बुद्ध ने पूर्व जैन दीक्षा ली थी।
(२) दिगम्बर समुदाय के दर्शनसार नामक ग्रन्थ में भी यही लिखा है।
(३) बौद्ध धर्म के महावग्गा नामक ग्रन्थ के १-२२-२३ में वुद्ध के भ्रमण समय का उल्लेख है कि एक समय वुद्ध सुपासवस्ति में ठहरा था। इससे यही सिद्ध होता है कि वुद्ध प्रारम्भ समय में जैन थे
और जैनों के सातवें तीर्थकर सुपार्श्वनाथ के मन्दिर में ठहरे थे।
(५) बौद्ध ग्रन्थ ललित विस्तार से भो यही सिद्ध होता है कि राजा शुद्धोदन जैन श्रमणोपासक थे अर्थात् पार्श्वनाथ सन्तानियों के उपासक थे ।
(६) डा० स्टीवेन्सन साहब के मत से भी यही सिद्ध होता है कि राजा शुद्धोदन का घराना जैन धर्म का उपासक था।
(७) डा० भाण्डारकर ने भी महात्मा बुद्ध का जैन मुनि होना स्वीकार किया है ( देखो जैन हितैषी भाग ७ वाँ अंक १२ पृ० १)।
(८) बुद्ध ने अपने धर्म में जो अहिंसा को प्रधान स्थान दिया है यह भी जैन धर्म के संसर्ग का ही परिणाम है।
(8) बुद्ध ने आत्मा को क्षणिक स्वभाव माना है जो जैन सिद्धान्त में "द्रव्य पर्याय' द्रव्य नित्य और पर्याय अनित्य अर्थात् पयोय समय समय पर बदलते रहते हैं, बुद्ध ने द्रव्य को पर्याय समझ आत्मा को
"क्षणिक" प्रतिक्षण नाश होनेवाला माना है। इत्यादि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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