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[ १० ] अनुपम शांति प्रदान की, अपने अतिशय प्रभाव और अपार शक्ति से "अहिंसा परमोधर्मः" का संदेश भारत के कोने कोने में पहुंचा दिया, समाज जो वर्ण, जाति, उपजाति, ऊँच, नीच के विषैले कांटो से पूर्णतया ग्रसित था, अपने कल्याणकारी उपदेश एवं महामन्त्र द्वारा जनता को समभावी बनाके उस विष को अमृतमय बना दिया, याने उस काल को भिन्नभावरूपी बाड़ाबन्धी का नाश कर प्राणीमात्र को धर्म व मोक्ष का अधिकारी बनाया, उसके फलस्वरूप थोड़े ही काल में भगवान वीर के शांतिप्रद झंडे के नीचे लाखों करोड़ों ही नहीं किन्तु असंख्य भावुक सुख पूर्वक अपनी जीवन यात्रा बिताने लगे।
भगवान् वीर प्रभु के समकालीन अहिंसाधर्म के प्रचारक एक और व्यक्ति थे जिनका नाम था महात्मा बुद्ध । प्रसंगानुसार महात्मा बुद्ध का भी संक्षिप्त उल्लेख करना हम यहाँ समुचित समझते हैं। __ कपिलवस्तु के राजा शुद्धोदन के पुत्र गौतमबुद्ध नामक राजकुमार ने जैनाचार्य पेहित मुनि के पास जैनदीक्षा ली। चिर अवधि तक तप करने के पश्चात् उनका दिल तपस्या से हट गया और एकाकी विहार करने लगे। पश्चात् अपने नाम पर "बौद्ध" नामक धर्म चलाया। यद्यपि बौद्ध ग्रन्थों में यह स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता कि बुद्ध ने जैन दीक्षा ली थी तथापि इस बात को सिद्ध करने में थोड़े बहुत प्रमाण अवश्य मिल सकते हैं।
(१) श्वेताम्बर समुदाय का आचारांगनामक सूत्र
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