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“ मूर्ति-पूजा-तत्त्व-प्रकाशः"
नमोऽस्त्वखिल-कल्याण-कञ्ज-कानन-भानवे । प्रणमत्सकलाभीष्ट-पूर्वये दिव्य-मूर्तये ॥ १ ॥ भावार्थ:-सर्वमंगलरूप कमल-धन के लिये सूर्य के समान, प्रणाम करने वालों की सभी इच्छाओं के पूर्ति करने वाले दिव्य मूर्ति ( भगवान् ) को प्रणाम हो ॥१॥
स्थाभीष्ट देव मूर्तीनां पूजा येन विधानतः । कृता प्राप्त न किं तेन प्रत्यक्ष किं प्रमाणकम् ॥ २ ॥
भावार्थ:-जिसने अपनी इष्टदेव मूर्तियों की विधिपूर्वक पूजा की उसने क्या नहीं प्राप्त किया अर्थात् सभी कुछ प्राप्त किया । प्रत्यक्ष में प्रमाण क्या ? ॥२॥ .
पापं लुम्पति दुर्गतिं दलयति व्यापादयत्यापदं । पुण्यं संचिनुते श्रियं वितनुते पुष्णाति नीरोगताम् ॥ सौभाग्यं विद्याति पल्लवयति प्रीतिं प्रसूते यशः। स्वर्ग यच्छति निवृतिं च रचयत्यर्चा प्रभो र्भावतः ॥३॥
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