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________________ करुणरसकदंबकं सुग्गीवाई सुहडा, सव्बे जाहिन्ति निययनयराई । तु पुण अहो बिहीसण !, कं सरणं तं पवज्जिहिसि ॥२१॥ पढमं चिय उवयारं, कुणन्ति इह उत्तमा नरा लोए । पच्छा जे मज्झिमया, अहमा उभएसु वि असता ॥ २२ ॥ सुग्गीवय ! भामण्डल ! 'चियया मे रयह मा चिरावेह | जामि अहं परलोयं, तुब्भे वि जहिच्छियं कुणह ॥ २३ ॥ — पउमचरिए प० ६२ ॥ १९ [११] लच्छीहरस्स मरणे पउमस्स विप्पलावो । लच्छीहरस्स देहं, सुरहिसुगन्धं सहावओ मउयं । जीएण वि परिमुक्कं, न मुयइ पउमो सिणेहेणं ॥ २ ॥ अग्घाय परिचुम्बइ, उबेर अङ्के पुणो फुसइ अङ्गं । रुइ महासोगाणल-संतत्तो राहवो अहियं ॥ ३ ॥ हा कह मोत्तूण मए, एक्कागिं दुक्खसागरनिमगं । अहिल्ससि वच्छ ! गन्तुं, सिणेहरहिओ इव निरुत्तं ॥ ४ ॥ उट्ठे हि देव ! तुरियं तवोवणं मज्झ पत्थिया पुत्ता । जाव न विजन्ति दूरं, ताव य आणेहि गन्तूणं ॥ ५ ॥ धीर ! तुमे रहियाओ, अइगाढं दुक्खियाउ महिलाओं । ललन्ति धरणिवट्ठे, कलुणपलावं कुणन्तीओ ॥ ६ ॥ १ थिता. २ ७. भामटे ४. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034534
Book TitleKarunras Kadambakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturvijay Gani
PublisherJivanbhai Chotalal Sanghvi
Publication Year1941
Total Pages326
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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