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श्री जैन शासन संस्था सूक्ष्म दृष्टि से समझकर विश्व की तमाम विचार धाराओं के ऊपर सर्वातिशायी महत्वपूर्ण अमिट छाप पैदा करने की क्षमता रखने वाले, सूक्ष्म विचारक विद्वर्य पंडित प्रवर श्रीप्रभुदास भाई बेचरदास भाई पारेख की कमल से निमित हुआ।
बाद उसे सुव्यवस्थित कर हिन्दी रूपान्तर किया गया तथा पुस्तिका के विषय को समथित करने वाली सामग्री परिशिष्ट के रूप में जोड़ दी गई है, इस तरह इस लघु पुस्तिका का प्रकाशन
हुआ।
पहले यह पुस्तक वि० सं० २०१५ के चातुर्मास में उदयपुर श्री संघ को उदार सहायता को प्राप्त कर प्रकाशित हुई थी।
परन्तु जगह-जगह से अत्यधिक मांग आने पर प्रथमावृत्ति सम्पूर्ण हो जाने पर परिद्धित संस्करण के रूप में यह द्वितीयावृत्ति राजस्थान जैन संस्कृति रक्षक सभा ब्यावर के मारफत प्रकाशित की जारही है।
विश्वास है कि प्रस्तुत पुस्तिका को आद्योपान्त पढ़कर गुरुगम से कुछ बातें समझने की चेष्टा करके, नये २ बंधारण विधान बनाने की दुष्प्रवृत्ति के कुपरिणामों से बचते हुए, जिन ' शासन की मौलिक गहराई को पहचान कर, कालबल से होने वाली बुद्धि भेद की गहरी खाई में गिरती हुई सांस्कृतिक विचार धारा . की सुरक्षा में सुज्ञ महानुभाव जुटे रहेंगे।
प्रस्तुत पुस्तिका में छद्मस्थसुलभ जिन शासन की मर्यादा एवं पंचांगी आगमों की आज्ञा से विरुद्ध कोई बात हो या छपाई आदि का कोई दोष हो उसका सकल संघ समक्ष क्षमा मांगते हुए प्रस्तुत पुस्तिका का सदुपयोग कर शासन को यथार्थ सेवा के लाभ को प्राप्त कर परम पद को प्राप्त करें। यह मंगल कामना ! ! वीर नि० सं० २४९१ । वि० सं० २०२२
प्रकाशक : विजया दशमी
शंकरलाल मुणोत
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