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श्री जन शासन संस्था ॥ आणाए धम्मो-जिनाज्ञा परमो धर्मः ॥
ततीय संस्कण की भमिका "श्री जैन शासन संस्था की शास्त्रीय संचालन पद्धति" का प्रथम संस्करण विक्रम सं. २०१५ (वीर सं. २४८४) में उदयपुर चातुर्मास में उदयपुर श्री संघ की उदार सहायता से प्रकाशित हुआ था किन्तु मेवाड़-राजस्थान मालवा-मध्य प्रदेश आदि कई संघ एवं स्थान-२ की मांग होने से द्वितीयावृति विक्रम सं २०२२ (वीर सं. २४९१) में श्री राजस्थान जैन संस्कृति रक्षक सभा, ब्यावर के मार्फत प्रकाशित हुई थी जो भी अल्प समय में समाप्त हो गई। इसके पश्चात लम्बे समय से भारतवर्ष के श्री संघ, नई पीढ़ी के वहीवटदार एवं अन्य जिज्ञासु श्रावकों को हिन्दी भाषा में शास्त्रीय मार्ग दर्शन प्रदान करने, जिनाज्ञा-शास्त्राज्ञा, पंचांगी जिनागम तथा प्राचीन अविच्छिन्न परम्परा एवं मान्यता अनुसार श्री संघ की प्रबंध व्यवस्था का संचालन करने को प्रेरणा देने हेतु एवं नये कार्यकर्ताओं को प्रचीन परम्परागत पद्धति की जानकारी देने हेतु मेरी ( पंन्यास श्री निरुपम सागर ) उत्कृट भावना थी कि इस पुस्तक को तृतीयावृत्ति शीघ्र प्रकाशित कर स्थान २पर बिना मांगे ज्ञान भंडार एवं व्यवस्थापकों-न्यासियों को भेजी जावे जिससे श्री संघ की सम्पत्ति, सात क्षेत्र, देवद्रव्य, धर्म द्रव्य आदि के संरक्षण एवं अभिवृद्धि की ओर श्री संघ, वहीवटदार एवं कार्यकर्ता अग्रसर हों। वर्तमान में पुस्तक दुर्लभ होने के साथ ही अत्यावश्यक भी थी अतः तृतीयावृत्ति प्रकाशित करवाने का विचार किया गया। एक वर्ष तक विभिन्न व्यक्ति, संस्था, ज्ञान भण्डार से पूछताछ एवं खोजबीन करने पर इसकी एक प्रति श्री महोदय सागर जैन शास्त्र संग्रह, इन्दौर में उपलब्ध हुई जिसकी फोटू काफी कराकर यह संस्करण जो आपके हाथ में है, प्रकाशित कराया गया ।
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