________________
अपना ग्रथिलपणा प्रकट मत कर । इससे आपका मंतव्य शास्त्रसंमत कदापि नहीं हो सकता । क्योंकि दूसरे भाद्रपद अधिकमास को तुमलोग भी गिनती में स्वीकार करते हो तथा अधिकमास में पाप पुण्य का बंध और पूंख लगती है यह भी मानते हो तो ग्रथिल [पागल-मूर्ख ] की तरह अधिकमास गिनती में नहीं, गिनती में नहीं, ऐसा सर्वथा महामिथ्या उत्सूत्रवचन बोलते हुए अपना उपहास्य क्यों कराते हो ?
उत्सूत्रवादी का प्रश्न-अधिकमास को गिनती में नहीं मानकर अभिवर्द्धित वर्ष के १२ मास २४ पक्ष ३६० रात्रिदिन का ही अभ्युठिया खमाना उचित है, किंतु १३ मास २६ पक्ष ३६० रात्रिदिन युक्त अभ्युठिया खमाना उचित नहीं है ?
उत्तर-अहो देवानुप्रिय ! चन्द्रसंवत्सर के १२ मास २४ पक्ष हैं, उनको अभिवर्द्धित वर्ष में योजित करके झूठी कल्पना से शास्त्रविरुद्ध उत्सूत्रप्ररूपणा क्यों करते हो ? कारण कि शास्त्रों में तो अभिवर्द्धित वर्ष के, १३ मास २६ पत्न श्रीतीर्थकर तथा गणधर महाराजों ने कहे हैं। ___ श्रीगणधर महाराजप्रणीत चन्द्रप्रज्ञप्तिसूत्र में मूलपाठ । यथा
गोयमा ता पढ़मस्सणं चंदसंवच्छरस्स चउवीसाइं पव्वाइं दोच्चस्सणं चंदसंवच्छरस्स चउवीसाइं पव्वाइं तच्चस्सणं अभिवढिय संवच्छरस्स छवीसाइं पव्वाइं चउत्थस्सणं चंदसंवच्छरस्स चउवी साइं पव्वाइं पंचमस्सणं अभिवढिय संवच्छरस्स छवीसाइं पव्वाइं सपुवावरेण जुगे चउवीसाई अधिगाइं पव्वसयं भवति ति माख्खायं ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com