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( ४५ ) उपाध्यायों ने अपनी रची हुई कल्पसूत्र की टीकाओं में उक्त लेख के अनंतर लिखा है कि
कार्तिकमास प्रतिबद्ध चतुर्मासिक कृत्यकरणे यथा नाऽधिकमासः प्रमाणं तथा भाद्रमास प्रतिबद्ध पर्युषणाकरणेऽपि नाऽधिकमासः प्रमाण मिति त्यजकदाग्रहं । __ याने कार्तिकमास प्रतिबद्ध चतुर्मासिक कृत्य करने में अधिकमास दूसरा कार्तिक जैसा प्रमाण नहीं है वैसा भाद्रपद मास प्रतिबद्ध पर्युषणा करने में भी अधिकमास दुसरा भाद्र प्रमाण नहीं है, इसलिये कदाग्रह को त्याग कर । तो आप लोग चतुर्मासिक कृत्य १०० दिने दूसरे कार्तिक अधिकमास में करने का दुराग्रह क्यों करते हैं ? अथवा ७० दिने प्रथम कार्तिकमास में चतुर्मासिक कृत्य क्यों नहीं करते हैं ? इसी तरह दूसरे भाद्रपद अधिक मास में ८० दिने पयुषण करने का कदाग्रह त्यागकर शास्त्रसंमत ५० वें दिन प्रथम भाद्रसुदी ४ को पर्युषण क्यों नहीं करते हो ? फिर आगे आपके उपाध्यायजी ने लिखा है कि
__ अधिकमास किं काकेन भक्षितः किंवा तस्मिन् मासे पापं न लगति उतबुभुक्षा न लगति इत्याधुपहसन् मा स्वकीयं ग्रहिलत्वं प्रकटय ।
अर्थात् अधिकमास को क्या काक (कौए) भक्षण कर गए अथवा उस अधिकमास में क्या पाप नहीं लगता, क्या पूँख नहीं लगती कि जिससे अधिकमास को उसके दो पक्षों को ३० दिनों को गिनती में नहीं मानते हो ? इत्यादि उपहास्य करता हुआ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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