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भावार्थ - हे गौतम ! प्रथम चन्द्रवर्ष के २४ पक्ष होते हैं, दूसरे चन्द्रवर्ष के २४ पक्ष होते हैं, तीसरे अभिवर्द्धित वर्ष के २६ पक्ष होते हैं, चतुर्थ चन्द्रवर्ष के २४ पक्ष होते हैं, पाँचवें अभिवर्द्धित वर्ष के २६ पक्ष होते हैं । पूर्वापर सब पक्षों की गिनती करने से १ युग में १२४ पक्ष होते हैं । यह सब तीर्थकरों ने कहा है और मैं भी कहता हूँ ।
आचार्य श्रीमलयगिरजी महाराज विरचित टीकापाठ । यथा
संप्रति युगे सर्वसंख्यया यावन्ति पर्वाणि भवंति तावंति निर्दिदिक्षुः प्रतिवर्षं पर्वसंख्यामाह तापढ़मस्सणमित्यादि ताइति तल युगे प्रथमस्य णमिति वाक्यालंकृतौ चन्द्रसंवत्सरस्य चतुर्विंशति पर्वाणि प्रज्ञप्तानि द्वादशमासात्मको हि चान्द्रः संवत्सरः एकैकस्मिश्च मासे द्वे द्वे पर्वणी ततः सर्व संख्या चंद्रसंवत्सरे चतुर्विंशतिः पर्वाणि द्वितीयस्य चान्द्रसंवत्सरस्य चतुर्विंशति पर्वाणि भवंति तृतीयस्याऽभिवर्द्धित संवत्सरस्य षडूविंशतिः (पक्ष) पर्वाणि तस्य त्रयोदश मासात्मकत्वात् चतुर्थस्य चान्द्र संवत्सरस्य चतुर्विंशतिः पर्वाणि पंचमस्याऽभिवर्द्धित संवत्सरस्य षडूविंशतिः पर्वाणि कारणमनन्तरमेवोक्तं तत एवमेवोक्तेनैव प्रकारेण सपुव्वावरेणत्ति पूर्वापर गणित मिलनेन पंच
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