SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तेमां प्रथम " नो" शब्दनो अर्थ लखीये छीये. आगम सव्व निसेहे, नो सदो अहव देसपडिसेहे । सव्वे जहण सरीरं, भवस्सय आगमा भावा ॥१॥ . अर्थः-" नो" शब्द छे ते, आगमना ( अर्थात् सिद्धांत पणाना ) सर्व प्रकारथी निषेधमां वपराय छे. । अथवा आगमना देश निषेधमां, ( अर्थात् एकाद भागना निषेधमां ) 'नो' शब्द नो अर्थ, करवानो शास्त्रकारे कहेलो छ । तेमां उदाहरण ए छे के, * जाणग सररि, अने + भवि सरीर, आ बे भेदो सावादि भव्य पुरुषो संबंधी छे, तेना वर्णनमा ‘नो' शब्दनो अर्थ, आगम पणानो सर्वथा प्रकारथी अभाव जणावे छे ।। हवे द्रव्य निक्षेपमां ? सरीर, अने । २ भविभ सरीर आ वेथी, व्यतिरिक्तना जे त्रण भेद करेला छे, ते 'त्रण भेदो, साध्वादि भव्य पुरुषोना संबंधथी, भिन्न, स्वरूपनाज करेला छे जेमके ? लोकिक, २ कुप्रावचनिक, अनं ३ लोकोत्तरिक, । आ त्रण भेदो, आवश्यक क्रियाना जाण शुद्ध साधुना, शरीरनी साथनो संबंध छोडीनेज वर्णन करेला छे, तेनी साथे किंचित् मात्र पणे संबंध राखेलो नथी, तेथी तेने व्यतिरिक्त पणे कहेला छे । हवे व्यतिरिक्तना त्रण भेदमां, लोकोत्तरिक नामनो जे त्रिजो भेद छे तेमां षट् आवश्यक क्रियानो संबंध जोडेलो होवाथी भ्रांति थाय छे के, इहां पण ते शुद्ध साध्वादिकनो संबंध होवो जोइये, परंतु जे ने गुरु गमता मळेली नथी तेज भ्रांतिमां पडे छे, अने शुद्ध साध्या * अंत अवस्था. । + पूर्व अवस्था.। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034494
Book TitleDharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAmarvijay Jain Pathshala
Publication Year1907
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy