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________________ ९४ आवश्यकने निरर्थक कहेशो तो, ढूंढक साधु श्रावकोनुं, पडिकमण विगरे, सर्व प्रकारनी जाहेरमा देखाती क्रियाओ निरर्थक ठरशे । केमके जुवो प्रथमतो पडिकमणामांज घणा एक ढूंढक साधु श्रावको अर्थ विनानो कोरो पाउज पढे छे । तेमां पण जो शुद्ध उच्चारण पूर्वक होय तोज ते द्रव्य आवश्यक रूप गणाय, नही तो एके धडामां न गणाय । माटे अमो सूचवीये छे के तमारा केला साधु श्रावको अर्थना जाण छे, अने शुद्ध उच्चारण पूर्वक भणे छे, तेनो विचार करी जुवो, अने पछी द्रव्यनिक्षेपने निरर्थकपणे ठरावो ! || अमो तो एज कहीये छे के, तमारा ढूंढकोने, एके वातना परमार्थनी खबर पडती नथी, तेथी आडा अवला हाथ नाखीने फांफां मारोछो. ॥ || वली विशेषपणं एछे के, आगमना स्वरूपथी आवश्यकना भेदनी व्याख्या करतां गणधर महाराजाओए द्रव्यमां, तेमज भावमां पण, केवल आगमना अक्षरोच्चारण स्वरूपनीज विवक्षा लीली छे । परंतु क्रियानी विवक्षा अंगीकार करी नथी एम लक्षमां राखवानुं छे. । आवी रीते अमोए आगमरूप प्रथमना भेदी, द्रव्य आवश्यकना निक्षेपनो, तेमज भाव आवश्यकना निक्षेपनो, किंचिन् मात्र तात्पर्य कहि बताव्यो छे, ते लक्षपूर्वक मूल सूत्र उपर ध्यान देवाथी मालम पडशे. ॥ || हवे नो आगमथी, आवश्यक सूत्रनो ' द्रव्यनिक्षेप शुं ! चीज छे, || अने नो आगमथी आवश्यक सूत्रनो, 'भावनिक्षेप' शुं ! चीज छे, तेनो किंचित् तात्पर्य लखी बतावीये छीए. ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat , www.umaragyanbhandar.com
SR No.034494
Book TitleDharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAmarvijay Jain Pathshala
Publication Year1907
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
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