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________________ ५३ करी बेठा छो, केमके ते भाव अरिहंतना निक्षेपमां जूठी कल्पना चाली की नही, नहि तो द्रव्य अरिहंतनी परे 'भाव अरिहं तमा पण १ लोकिक, २ कुमा वचनिक, अने ३ लोकोत्तरिक, " < भाव अरिहंत' पण कही बताववा जोइता हता. || वास्ते तमारो लेख सिद्धांतथी विरुद्ध थयेलो छे. ॥ वली विशेष समजवा नुं एछे के, - आवश्यक सूत्रना द्रव्य निक्षेपमां १ आगम, २ नो आगम, थी वे भेद करेला छे । तेमज भाव आवश्यकना निक्षेपमां पण, ए वे भेदज करेला छे । तेमां जे, १ आगम रूप, प्रथमनो भेद छे, ते तो केवल आवश्यक सूत्र रूपज छे, तेनुं पठन करवावालो, साधुज होय छे, अने ते साधु, भणी पण रहेलो छे, छेवट उपदेश शुद्धांपण करी रहेलो छे, अने प्रश्न उत्तर विगरे सर्व करी रह्यो छे, परंतु ते साधुनो उपयोग, ते आवश्यक सूत्रमां बरोबर न होवाथी, तेने आगमधी द्रव्य आवश्यक कह्यो छे, एटले के केवल आगम रूप छे एम जणायुं । अने तेज आवश्यक सूत्रन भणतां भणतां ज्यारे ते साधु उपयोगना घरमां आवी गयो, एटले तेने आगमी भाव आवश्यक रूप मानी, भाव आवश्यकना भेदमां शास्त्रकारे कह्यो. कारणंक आवश्यक सूचना अर्थमां उपयोग विनाना सांधुने, द्रव्य आवश्यकपणे कारण रूपथी कह्यो, | अने तेज साधु, ज्यारे अर्थमां उपयोगवालो थयो, एटले ते 6 द्रव्य आवश्यकनेज, भाव आवश्यकमां गण्या. तेथी द्रव्य आवश्यक छे ते, भाव आवश्यकनुं कारण होवाथी उपयोगवालोज छे । परंतु तमोए जेवी रीते ' त्रण निक्षेपने' उपयोग वि नाना ठराव्या ते प्रमाणे उपयोग विनाना नथी । अगर जो द्रव्य Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034494
Book TitleDharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAmarvijay Jain Pathshala
Publication Year1907
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
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