SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 96
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९२ ? थी वे भेद करेला छे, ॥ तमां १ आगमथी, आवश्य सूत्रनो जाण, उपयोगवाला, साधु कहेलो छे. || अने २ नो आगमथी, भाव आवश्यक, १ लोकिक, २ कुप्रावचनिक, अने ३ लोकोत्तरिक, एम aण प्रकारथी वर्णन करी बतावेलो छे. ॥ तो आ जे, नो आगमथी भाव आवश्यक क्रियाना त्रण भेद वर्णन करेला छे, तने भाव अरिहंत साथे शुं लागु पाडी शकी शुं ! कोइ दाहाडो पण लागुपाडी की नही, तेम पडी सकशे पण नही, अने वाडीलाल पण, भाव अरिहंतमां, तेमज भावसूत्रमां, लागु पाडी बतावी शक्या नथी वास्ते जे सूत्रकारे, विशेष विषयोने पकडी, विशेष विशेष वर्णन करी बताव्युं छे, ते ते छोडीने, केवल लक्षणकारना, सामान्य विषयने पकडीनेज, बीजी वस्तुओना निक्षेपो करवाना छे. मात्र जे ज्ञान, दर्शन, अने चारित्र स्वरूपना आध्यात्मिक गुण क्रिया वाचकना पदार्थों छे, ते पदार्थोंना 'चार निक्षेपोनुं वर्णन करतां " द्रव्य निक्षेपमां " तेमज " भाव निक्षेपमां " ' आगम' नो आगमना ' भेदो करीने घटतो विचार करवानो छे परंतु ते 'द्रव्य ' अने 'भावमां' आगम छे ते तो सर्वज्ञ भाषित सिद्धांत रूप ज समजवानुं छे। अने ते 'द्रव्य' अने 'भाव' निक्षेपमां "नो आगमना " जाणग, भविअ, थी व्यतिरिक्त (ओटले कथन करवा मांडेली वस्तुथी भिन्न) छे तेना 'लोकिक, कुमावचनिक, अने लोकोत्तरिक, नाम प्रमाणे गुण वाला, त्रण भेदो करीने बधे ठेकाणे अपणा मननी जूठी कल्पनाओ करीने दोड करवानुं नथी, अने तेम दोड करीने जवाथी एक तो सिद्धांतनी महा आशातना, अने पंडितानी पंक्तिमा, उपहास्यनेज प्राप्त थइशं ॥ प्रथम तमारोज लेख जूबो के, द्रव्य अरिहंतमां खीचडो करीने, पांच भेद कर्या, अने भाव अरिहंत ना निक्षेपमां, जूठी कल्पना करतां अचकाइने, एकज भेद Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat 9 www.umaragyanbhandar.com
SR No.034494
Book TitleDharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAmarvijay Jain Pathshala
Publication Year1907
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy