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________________ मनुज स्वरूप मानीने, अमो तेमनी पण भक्ति करी, अमारां दुःकमोने दूर करीये छीये. । अने जे “ पथ्थर" कहीने अवज्ञा करे छे ते तो, जिन मार्गनी श्रद्धाथी विपरीत थवाथी, ते धर्म रहितोनां, हृदयज पथ्थररूप थयेलां छे, एम अमो मानीये छीए, केमके जो किंचिन् मात्र पण जैन सिद्धांतोनी श्रद्धा होती तो, स्वछंदपणाथी आवा अनुचित लेखोज केम लखता ?॥ वळी पण आज विषय उपर लखे छे के, अरेरे ? भस्म ग्रहना भ्रमित आचार्योए, मात्र पेटना कारणे, दुधमांथी पौरा वीणवा जे काम करी, स्थापनानिक्षेपनो अवलो अर्थ लइ, मूर्तिपूजानां अने ते अंगे थतां बीजां अगणि पापोमां, भोली दुनीयाने केवी डुबावी दीधी छे. ____ आ लेखमां तो तमो, महा मूढपणानुं आचरण करी, गणधर महाराजाओनेज, दुषित करो छो, अने आपनी मति राइना दाणा जेटली पण न होवा छतां, मेरु पर्वत तुल मानीने बेठेला होय एम जणावो छो, अने लाखो जैनना धुरंधर आचार्योने, तुछ समजी, आपणे आप सर्वज्ञपणाना पदने, आरूढ थया छो! पण ते तमारा अनुयायीओमां जे महा मूढ हशे, तेज तमारी श्लाघा करशे ? बाकी विचक्षण हशे ते तो, गंदू पात्र जाणी, तमाराथी दूरज रहेशे ? | केमके, अगर तमो, सर्व आचार्योनो करेलो अर्थ, कबूल न राखतां, गणधर महाराजाओनो, तेमज दूंढनी पार्वतीनो करेलो अर्थ के, हाथ जोडे हुये, ध्यान लगाया हुवा, साधुका रूप, मूर्तिनो अर्थ, ते तो कबुल राखवो हतो, तेथी आपोआप आचार्योनो करेलो मूर्ति रूपनो अर्थ, सत्य रूप थइ पडतो, पण तमो तो केवल उद्धत बनी, आपणे आप अथाग फाजलपणे जइ, सर्वज्ञपणानुज डोल घालीने बैठा छो, तेथी अमारे कहेवानो इलाजज खुटेलो छे. । आ प्रसंगे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034494
Book TitleDharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAmarvijay Jain Pathshala
Publication Year1907
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
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