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पोते लक्ष्मीवान होवा छतां, संघ कहाडीने वांदवा न गया हता, तो पछी " पथ्थरने" भगवान मानी लइ, तने वांदवा माटे संघ कहाडीने जq, एमां शुं भगवाननी आज्ञा होय ? ॥ __ आ लेख पण विचार करवा योग्य छे, केमके वीतराग देवने वांदवा, संघ काढीने, कोइ पण गयुं नहतुं, तेमज सुबाह अने उदाइराजा, भक्तिमान् , लक्ष्मीवान् , होवा छतां भावनाज भावी, पण संघ काहीने गया नहता, । तेथी ए सिद्ध थयुं के, मुनिने के, भगवानने, संघ काढीने वांदवा जळू ते, तमारा लेख प्रमाणे केवल सिद्धांतथी विरुद्धज छे, एम तमारु मानवू छ. | तो पछी तमो, सूत्रना लेखथी विरुद्ध थइ, तमारा मुख बंधाने, वांदवा, संघ काढीने जे मार्गे पडो छो, ते तो दुर्गतिनाज मार्गे पडता हशो ? एम तमाराज लेखथी तमारे कबूल कर पडशे, अगर तमो, जगजाहेरपणे संघ काढीने जवा छतां, ना कबूल जशो तो ते जवाने मार्ग नथी, केमके, मोरवी कोन्फरन्सनी, प्रथम बेठकमां, रीसेपशन कमिटीना प्रेसीडंट, गोकळदास राजपाले, भरसभामां कहेलुं छे के-सदगृहस्थो आपणा सउना जाणवामां छे के, आपणा धर्ममां, घणाज प्राचीनकाळथी, मुख्यत्वे करीने, साधु मुनिराजने, वंदना, करवा सारु, संघ काढवानो रीवाज चाल्यो आवे छे. । एम मुंबाइ समाचारथी वाचवामां आव्युं हतुं. । तमारा अरस परसना लेखथी ए विचार थाय छे के, तमो सूत्रथी विरुद्धपणेज, संघ काढीने, वांदवा, जता हशो ? के तमारो लेख लंबो चवडो जूठो थयो होय ? बेमांथी एकज वातनी सिद्धि थशे. । अने अमो जे मूर्तियोनां दर्शन करवा, संघ काढीने जइए छीये ते तो, जैन सिद्धांतनी आज्ञा प्रमाणेज करीये छीए, । केमके, जेवी रीते संकेतित जडरूप अक्षरोने, भगवाननुं ज्ञान मानी, तेनी भक्ति करीये छीये, तेवीज रीते तेमनी मूर्त्तिने, ते
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