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________________ ८३ तो, ते जडरूप अक्षरोधी, भगवानना ज्ञान गुणनी पण याद न थवी जोइये, अने भगवाननुं ज्ञान छे एम पण कहेतुं न जोइये, परंतु जेनी विपरीत मति थयेली होय तेज, जडरूप अक्षरोमां पण, भगवानना ज्ञान गुणनी याद नथी थती एम माने, परंतु अमो तो ते जरूप अक्षरोमां पण, एमज मानीये छीये के, खरेखरु ए तो भगवाननुंज ज्ञान छे, परंतु जडरूप अक्षरो छे, एम कहेवाने मागता नथी । अने जेवी रीते जडरूप अक्षरोने, भगवाननुं ज्ञान करीने मानीये छीये, तेवीज रीते वीतरागना स्वरूपने याद आपनारी, तेमनी मृर्त्तिने वीतराग स्वरूपथीज मानीये छीये. । वास्ते धर्मनी तीव्र इच्छाने लीधे, उन्मार्ग चढी गया नथी, परंतु खासपणे जो वीतराग देवनो मार्ग छे, तेज मार्ग पर आरूढ थयेला छीये. । वास्ते तमारेज विचार करवानो छे । केमके तमोज केवल, दया, दया, नो जूठो पोकार करी, अने वीतराग देवनी मूत्र्त्तिनी, अवज्ञा करी, वळी. जैन मार्गना तत्वोना, विपरीत भासथी, महा उन्मागंज चढी गयेला छो. । तेनुं तमोने किंचित् भान थाय, एवाज उद्देशथी अमोए, आ लेख लखवानो प्रयत्न कर्यो छे, परंतु द्वेष करी लेख लखवानी प्रयत्न कर्यो नथी. मांटे हजी पण विचार करो । वळी तमोए लख्यं जे, वैराग्य के ज्ञान थवानं ते तो, क्षयोपशम उपर आधार राखे छे, । ते तो बधाए लोक कबूलज करशे, परंतु जे शुभ निमित्तो छे तेज, जीवोने क्षयोपशमनी प्राप्ति वामां सहायभूत छे, अने अशुभ निमित्तो छे तेज, उन्मार्गे चढाव - नार होय छे, एवो सिद्धांतोनो ए राजमार्ग छे। अने जैन सिद्धांत, तेमज जिन मूर्ति, साधुनु स्वरूप, सामायिक, पोपथ विगेरे आत्मानो क्षयोपशम थवाने शुभ निमित्तो छे । छतां पण जेनी विपरीत बुद्धि थाय ते तो तेना दुर्भाग्यनुंज, एक चिन्ह छे, परंतु निमित्तनो दोष न गणाय । अने जे हलवाकर्मी ? जीवो छे, तेने तो शुभ निमित्तो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034494
Book TitleDharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAmarvijay Jain Pathshala
Publication Year1907
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
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