SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ૮૨ तनी, छबी के, बावयुं होत तो कदाच " द्रव्ये सारिखी, कही " शकात. ।। - आ विषयमा पण कवानुं एज छे के भगवान उपदेश देता हता, तेज, ज्ञाननो सार, संकेतित जडभूत अक्षरोनी स्थापना रूपे थइ, सिद्धांतो उपर लखाइने, आज पण अमोने, तेज प्रमाणे बोध आपनार निवडयो छे, वास्ते भगवाननुंज ज्ञान छे, एम अमो खास रीते मानीये छीये, अने तेमनी 'मूर्ति' तो तेमनाज जेवी आकृति वाळी होवाथी, तेमना सदृशरूप वाळी होवे तेमां कांड पण नवाइ सरखं जगातुं नथी, अने सिद्धांतमां पण 'अरिहंत पडिमा ' विगेरेना लेखथी पण सरखी कहेली छे, तो पछी सिद्धांतथी विपतपणानी तमारी करेली कुतर्को, तमारा कल्याणना माटे उपयोग रूप थवानी नथी । अने स्थापना निक्षेप रूपनी मूर्त्तिने, द्रव्यपं करवानुं कही बतावो छो ते तो, तमो प्रथमथीज गोथां खाता खाता आवेला छो, ते तो अमारा लेखंथी विचार करवानी टेव राखशो एटले, स्पष्टपणे मालम पडशे. ।। 1 वळी पण एज सूचनामां लखे छे के भगवाननो ज्ञान गुण, मूर्त्तिनो जड गुण, ते पण एक सारिखी कहेनारे विचारवा जेतुं छे. | आतो धर्ममां आगळ वधवानी तीव्र इच्छाने लीधे उन्मार्गे चडी जवा जेवं थयुं, वैराग्य के, ज्ञान थवानुं तो क्षयोपशम उपर आधार राखे छे. ॥ ॥ आ लेखमां पण विचार करवानो एछे के, सिद्धांतोमां लखायेला संकेतित अक्षरो छे ते पण, जड स्वरूपनाज छे, अने ते अक्षरो, भगवानना ज्ञान गुणने याद आपनारा छे, एम आपणे मानीये पण छीए, अगर जो तमारा जूठा विचार प्रमाणे विचार करवा बेसी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034494
Book TitleDharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAmarvijay Jain Pathshala
Publication Year1907
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy