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________________ खासपणे विचार करवानो छ । परंतु अज्ञानदशानो अंधार पिछोडो ओढी, जिन मूर्त्तिने जडरूप कही, अघोर कर्मना बंधननो हेतुरूप अ. नादर करवानो नथी । केमके संकेतित जडरूप, अक्षरोथी, लखायलु, भगवाननुं ज्ञान ' स्थापनारूपे थइ ' अमोने बोध आपीने परम पद पहोचाडवाने समर्थ थाय छे, तो पछी तेमनीज अर्थात् भगवतनी यादगिरीने आपनारी, तेमनीज साक्षात्रूप 'मूर्ति ' अमारा कल्याणने माटे केम नहि थाय ! अर्थात् थशेज, एज विचार करी आपणा कल्याणनो मार्ग हाथ धरवानो छे, आगे तो जेनी जेवी भवितव्यता.॥ वळी ए त्रीजी सूचनामांज लखे छे के, भगवाननी मूर्ति देखवाथी भगवान याद आवे छे, ते कारणथी मूर्ति पूजवी जोइए, ए दलील तद्दन पाया वगरनी छे. ॥ ___ आ लेखमां कहेवार्नु ए छे, के भगवाननी मूर्ति देखवाथी, अने तेमनी यादगिरी आववाथी, शुं ! तेमनी अवज्ञा करवी ! ए तमारी दलील पाया वाळी पंक्तिमां मुकवाने मागो छो के ? ते काइ समजायु नहि. । अमोने तो मूर्ति देखीने भगवान याद आववाथी, एवा भाव थाय छे के, एमनी भक्ति खेराद करवाथी करीये ? के स्तुति ( गुणग्राम ) करवाथी करीये ? के अमारा सर्वस्व अर्पण करीन करीये ? एवा अलोकिक भावनी वृद्धि थाय छे, वास्ते 'मूर्तिने ' पूजवी ए दलील पाया वगरनी नथी, परंतु तमारी करेली कुतर्कोज पाया वगरनी छे.॥ वळी एज सूचनामां लखे छे, जिन प्रतिमा माननारा, जिन प्रतिमा, जिन सारिखी कहे छे, पण द्रव्य, के भाव, एक पणरीते ते जिन सारिखी थइ शकती नथी, भगवान देहधारी हता ते वख Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034494
Book TitleDharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAmarvijay Jain Pathshala
Publication Year1907
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
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