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पण भगवान तो निजरूपमां भळी गयेला आत्मा छे, तेना गुण जे ज्ञान. दर्शन, चारित्र, ते तो अदृश्य छे, तेनी स्थापना शी रीते थइ शके. ?। आ लेख शुं तमारो विचारपूर्वक लखेलो छ के ? जरा आंख उघाडीने जुवो तो ? केमके जैन सिद्धांतोने तो आपणे भगवाननुज ज्ञान कहीये छीये, अने ते भगवाननुं ज्ञानपण रूप विनानुंज हतुं. तो ते अदृश्यरूप छतां क्यांथी तमारा जोवामां आव्युं, ? अने पुस्तक पानां उपर केवी रीते चढी गयुं ? तेनो काइ विचार कर्यो छ के ? जो थोडो पण विचार को होत तो, आवो बेढंगो लेख लखता नही, खेर हजी पण विचारश्रेणि उपर आवशो तो कल्याणनो मार्ग हाथ आवशे, । जूवो सत्यार्थचंद्रो. दय पृष्ट. ४ मां, ढूंढनी पार्वती पण लखे छे के, प्रश्न-स्थापना
आवश्यक क्या । उत्तर. काष्ट पै लिखा, चित्रोंमें लिखा, पोथी पै लिखा, अंगुलीसें लिखा, । छेवट एम पण लखे छे के, आवश्यक करनेवालेका रूप, अर्थात् हाथ जोडे हुये, ध्यान लगाया हुआ, ऐसा रूप. || एज प्रमाणे मूल सूत्रकारे पण, अक्षरो रूपनी स्थापनाथीज भगवानना ज्ञान गुणने स्थापित करवायूँ कहेलं छे, । तेमज आवश्यक क्रिया कारक साधुनी मूर्तिरूपथी पण आवश्यकनी स्थापना करवानी कहेली छे, केमके षट् आवश्यकनी क्रिया छे ते कर्ता विना जाणी शकाती नथी, माटे आवश्यक क्रियानी स्थापनाना विषयमा साधुनी मूर्ति पण करवानुं कही बताव्यु छे. परंतु भगवानना, अदृश्यरूप ज्ञान गुणने तो, अकारादिक अक्षरोना स्वरूपथीज स्थापित करवायूँ कहेलुं छे, अने ते ज्ञान, भगवाननो अदृश्य गुणरूप छतां पण, कल्पनाथी करेलो छे संकेत जेमां, एवा जड भूत, अक्षरोनी, स्थापना रूपे थइ, अमोने बोध आपीने, परमपदने, पोहचाडवाने, समर्थ थाय छ, । तेवीज रीते भगवानना
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