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________________ शरीरनी पण, जड पाषाणथी बनावेली मूर्ति, स्थापना रूपे थइने, तेमना सर्व गुणोने याद करावी, भक्तजनोने परमपद प्राप्त करवाने समर्थज थाय छे. अने भगवाननी मूर्ति देखवाथी भगवान याद आवे छे एम तो तमोए तेमज ढूंढनी पार्वतीए पण कबूल राखेखेंज छे. । तेथी जो तमारा आत्माना परिणाम बगडी जता होय तो ते तो तमारा दुर्भाग्यनुज चिन्ह छे, एमां न तो अमारो दोष छे, तेम न तो भगवाननी मूर्तिनो दोष छ, वास्ते तमारी करेली कुतर्को, अने तमारा जूठा लेखोज, तदन अयोग्यपणाथी लखायेला छे, परंतु वीतरागदेवनी मूर्तिरूपथी थयेली स्थापना अयोग्य नथी, ते तो आ दुनीयामां भगवानना ज्ञान गुणरूप अक्षरोनी स्थापनानी साथे सदा जयवंतीज रहेबानी छे. ॥ ॥ वाडीलाल-सूचना. ३ जीमां लखे छे के । मोहन घरमा श्री मल्लिनाथे, पोतार्नु आबेहुब मुवर्ण वावलं मुक्युं हतुं के जे कारणथी ‘छ राजाने' 'जातिस्मरण' ज्ञान उपन्युं हतुं, तोपण ए छ समकिती जीवोए बावलाने वांद्यं नहि, जो के एक तो उपकारी पदार्थ, कारण भूत पदार्थ हतो, बली तीर्थकरनी सदभाव स्थापना हती. ॥ 'नमिराजा' चुडीना कारणथी बूज्या. ॥ 'समुद्रपाल राजा' चोरने देखीने बूज्या-पण चुडीने, के चोरने, वांद्या पूज्या न हता.॥ ___ अहिं, 'मल्लिनाथना' बावला विषये, विचार करवानो ए छे के, ते मोहन घरमा ( एटले मोह प्राप्त करवाना घरमां) राखेलु हतुं, अने ते छ विषयी राजाओने वोध करवा, ते बावलामां दुर्गधी पण भरी राखवामां आवी हती, अने ते दुर्गधीना कारणथी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034494
Book TitleDharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAmarvijay Jain Pathshala
Publication Year1907
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
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