________________
فی
ना आकारथी तीर्थकर महाराजनी प्रसन्न मूर्तियो तैयार थती चाली आवे छे । परंतु जे महापुरुषोना, मिथ्यात्वरूप, तिमिर पडदा, दूर थइ गया छे, तेओ यथावदपणे तो सिद्धांतोनो पाठ जोइ, अने तेज प्रमाणे भगवाननी भर्तियोनां दर्शन करी, परमानंदमां गरकाव थइ, अनंत जन्मनां संचित अघोर कर्मोंने दूर करी रह्या छे। अने जेओना महामिध्यात्वरूप तिमिर पडदा दूर नथी थया ओ विपरीतपणे आचरण करी अवज्ञा करे छे. । तेओ अघोर पापना उदयथी नतो सिद्धान्तना पाठ थकी समजी शके तेम छे, अने नतो हजारो वर्षनी मृत्तियोनां दर्शन करीने पण समजी शके तेम छे, । अमो तो छेवट एम कहीये छीये के, जेओ वीतारागना वचनथी तदन विपरीत बनेला छे, तेओने तो साक्षात तीर्थकरो पण आवीने समजावी शकशे नहि, तो पछी छबीयो, अने बावलां मात्रा स्वरूपथी समजण क्यांथी थइ शकवानी छे. || अने ते ज्ञानी पुरुषो भविष्यकालनुं वर्णन पण करताज गया छे के, मतिया घणा जागशे, अने शुद्ध चालता पंथमां भेदो पाडशे अने तेज प्रमाणे आपणे जोइ पण रह्या छीये. वास्ते स्थापनानिक्षेपरूप जिन मूर्ति असदभाव नथी, परंतु निकृष्टकालना प्रभावथी तेते जीवोना अभाग्यने लीघे तेओना मनमां असद्भाव परिणामपणानी स्थापनाओ थयेली छे । तेथी तेओ मुझाय 3.11
•
वळी आ विषयमां ढूंढक भाइ लखे छे के, आपण विचारवा जे छेके, सद्भाव, अने असदभाव, ते रूपवंतनी होइ शके, पण भावगुणानी होइ शके नहि. भगवान निजरूपमां भळी गयेला आत्माज छे, तेना गुण जे ज्ञान, दर्शन, चारित्र, ते तो अदृश्य छे, तेनी स्थापना शी रीते थइ शके. ॥
विचार - तमो लखोछो के, स्थापना रूपवंतनी होइ शके,
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com