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________________ G ' भाव निक्षेप' उपादेय तरीके मानीये छीये, तेमना बीजा 'त्रण निक्षेप पण ' उपादेय तरीके अंगीकार करीये छीये, । अने जे चीजनो ' भावनिक्षेप ' ज्ञेय रूपे मानीये छीये, ते चीजना बीजा 'त्रण निक्षेप पण ' ज्ञेय रूपे अंगीकार करीये छीये, । अने जे चीजनो ' भाव निक्षेप' हेयतर के मानीये छीये, ते चीजना बीजा 6 त्रण निक्षेप पण ' हेयतरीकेज मानीये छीये, । तेथी: कुतर्को करीने पेटने आफरो चढाववाने जग्या छेज नहि. । विचार उपर आवसो तो तमने पण समज पडसे, अने हठ उपर जसो तो एक बात पण यथा योग्य समजी शकासे नही || वास्ते अमो ठगाता नथी, परंतु जे ' अव ' कहने अनादर करे छे, तेज भगवाननी भक्तिना लाभथी ठगाय छे. ॥ प्रभुनो फोटोग्राफ, अगर बावलुं नमलवाथी * नी तीसरी टीपमां. वाडीलाल - लोको ज्यारे मूर्त्तिने आगल करवा मागे छे तो पछी आ एक आश्चर्य वार्ता छे के तेओ ' सदभाव ' छोडी असद् भाव ' स्थापना, केम करे छे । जेनुं नामज, 'असद् एटले खोडं, तेने ग्रहण कर ए शुं विचार शक्ति पामेला प्राणीने शोभती वात छे ! श्रीमल्लिनाथजीनुं सुवर्णनुं बावलुं के विषयी राजाओ ने भेटवा तलपी रह्या हता. जो मूर्ति पूजा ए रुडुकाम होत तो केम साचवी राखवामां न आवत । वलीकारीगरो, आबेहुब छबी वनावनारा हयाती धरावतां छतां, कोइ पण तीर्थंकरनी 6 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034494
Book TitleDharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAmarvijay Jain Pathshala
Publication Year1907
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
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