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________________ शुं ! वस्तुना ' चार निक्षेप' करवाना शांखकारे बताच्या छे 'ते चारेने ' एकजरूप करी देवा धारो छे के ! परंतु चार निक्षेपने एक स्वरूपम गणधर महाराजाओथी विपरीतपणे जइ न करी सकाय. ! अने तेवा प्रकारनो प्रयत्न करीये तो, आपणा जेवा भ्रष्ट बीजा कोइ पण न गणाय. ॥ ॥ इति प्रथम नाम निक्षेपनो किंचित् तत्त्वाऽतत्त्व विचार संपूर्ण. हवे द्वितीय स्थापना निक्षेपनो तत्त्वात्तत्त्व विचार लखीये छे. ॥ ॥ वाडीलाल - सद्भाव स्थापना, फोटोग्राफ, अथवा, बावलुं || असद्भाव स्थापना १० प्रकारथी कराय, ॥ अने पृ. ६३ मां सूत्रना बीजा निक्षेपमां, कागल मुकीने स्थापना निक्षेप' करवानुं बतान्युं छे. ॥ 4 || हवे एना उपर विचार | प्रथम अमो एटलुंज पुछीये छे के, । १० दश प्रकारथी असदभाव स्थापना कराय छे, एवं या गुरु पाथी अथवा कया सिद्धांतथी भणीने आव्या ! अने सूत्रनी ' स्थापना कोरा कागलथी करवानुं बतावोछो तेपण, कया अकलवाला सिद्धांतना जाण पासेथी भण्या ! केमके, सूत्रकार गणधर महाराजे तो, सद्भाव, अने असद्भाव, ए बने प्रकारनी स्थापना दश प्रकारमाज, करवानो समावेश करी बतावेलो छ । तो पछी दशे प्रकारने असद्भाव स्थापना कया हिशाबथी कहो - छो ? अने लखेला अक्षरोने आवश्यक सूत्रनी 'सद्भाव स्थापना' गणधर महाराजाओए मूल सूत्रमांज कहेली छे, तेने द्रव्य निक्षेपमां Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034494
Book TitleDharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAmarvijay Jain Pathshala
Publication Year1907
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
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