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________________ वावालो होवाथी एनाम ध्रुव निग्रह पण कहीये, ३ । आत्माना कर्ममेलनी शुधी करवावालो होवाथी एनुं नाम विशुद्धी पण कहीये, ४ । छ अध्ययन भेगां होवाथी एनुं नाम अध्ययन षट्वर्ग पण कहीये, ५ । जीव अने कर्मनो संबंध दुर करवावालो होवाथी एनुं नाम न्याय पण कहीये, ६। मोक्षनी आराधनानो मार्ग होवाथी एनुं नाम आराधन मार्ग पण कहोये, ७॥ १ ॥ साधु अने श्रावकने प्रातःकाल अने संध्या कालना समये अवश्य करवाने योग्य छे, ते कारणथी एनुं नाम आवश्यक राखेखें छे ॥२॥ - आ वे गाथाओ आवश्यक सूत्रना चार निक्षेपना अंतमां आपेली छे, तेमां पहेली गाथामां आवश्यकनां एकंदर सात नाम कयां, । अने बीजी गाथामां साधु अने श्रावकने अवश्य करवानु कर्त्तव्य होवाथी एनुं नाम 'आवश्यक' छे एवं प्रगटपणे जणाव्युं छे, । वास्ते ए भाव आवश्यकनाज चार निक्षेप सूत्रकारे करीने बताव्या छे, ॥ मात्र विशेष एज छे के, बीजी वस्तुमां आवश्यक नामनो निक्षेप करेलो होय तो, तेनां बीजां रहेलां छ नाम छे तेनी प्रवृत्ति करी यकाय नही, पण आवश्यक सूत्रमा बीजां आवश्यकनां छ नामांनी प्रवृत्ति करवामां हरकत आवे नहीं, तेमज आधार अने आधेय एक मानीने साधुमां पण आवश्यक सूत्रनी प्रवृत्ति करी शकाय छे, अने तेज प्रमाणे सिद्धांतकार गणधर महाराजाओए करीने पण बतावेली छे, जूओ स्थापनानिक्षेप सूत्र, अने तेनुं लक्षण पृष्ट ५५ थी ते ५७ सुधी ।। अने तमो जे हयात तीर्थकरोनां नामने ‘भाव निक्षेप' कहोछो तेपण सिद्धांतथी, केटला बधा विरुद्धपणे गयाछो, तेनो पण जरा विचार तो करो. ? Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034494
Book TitleDharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAmarvijay Jain Pathshala
Publication Year1907
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
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