________________
इति आवश्यकना चतुर्थ भाव निक्षेपनो सूत्रार्थः हवे भाव निक्षेपर्ने लक्षण कहिये छीए
आर्याः भावो विवक्षित क्रियाऽनुभुति युक्तो वै समाख्यातः । सर्वज्ञेरिंद्रादिवदि हे दनादि क्रियाऽनु भावात् ॥ १ ॥ ___ अर्थः-व्याकरणथी, अथवा शास्त्रना संकेतपणाथी, अथवा लोकोना अभिप्रायथी, जे जे शब्दोमां, जे जे क्रियाओ, मानेली होय, ते ते क्रियाना परिणाम युक्त वस्तुनु वर्त्तन थतुं होय तेने, सर्वज्ञ पुरुषोए ‘भाव ' कह्यो छे. । जेमके, परम ऐश्वर्यना परिणाम युक्त वर्त्तन करे, त्यारेज ते 'इंद्र' कहेवाय, केमके इंद्रमां जे इंद्रपणानी परम ऐश्वर्य रूप ( अर्थात् परम ठकुराइपणा रूप ) नी क्रिया तेनो तेनामांज अनुभव होवाथी तेने 'भाव इंद्र पणु' गणाय ॥ १॥ __अहीं शुधी अमोए, अनुयोगद्वार सत्रनो मूल पाठ, अने तेनो अर्थ,। अने चारनिक्षेपनां लक्षण, जूदां जूदां कहीने बताव्यां छे
॥ इति आवश्यकना चार निक्षेप विषये सूत्र, तथा तेनो अर्थ, अने तेने लगतां लक्षण कहीने बताव्यां.
____ हवे धर्मना दरवाजा नामना ग्रंथभां, शाह, वाडीलाले जे, अरिहंत उपर, अने सूत्र उपर, चार निक्षेप, उतारीने बताव्या छे, तेमां मूत्रपणाथी जे विरुद्ध लेख थयो छे तेना, परस्परना मेलथी विचार करी बतावीये छीए ।।
वाडीलाल, सूचना-१ लीमां, लग्दे छे के । लोगस्समां
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com