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________________ ६२ लोइअं,' कुप्पावयणिअं,' लोगुतरि, इत्यादि. अर्थ:-भाव आवश्यक पण, आगमथी १, अने नो आमी २, एम वे प्रकारथी छे । आगमथी भाव आवश्यक तेने जाणवोके, जे साधु आवश्यकने शुद्धपणाथी परिपूर्ण पणे भ लो होय, अने तेमां परिपूर्ण पणे उपयोग वालो पण होय, तेनुं नाम आगमथी 'भाव आवश्यक पणुं ' जाणं ? । अने जे 'नो आगमथी भाव आवश्यक : पणुं छे ते त्रण प्रकारथी छे. ॥ मां प्रथम, लोकिक भाव आवश्यक ए छे के, सवारनी वखते, अने संध्याकालना समये, अन्यमतना लोको भारत अने रामायणनुं श्रवण करे छे, ते १ ॥ अनेकु प्रावचनिक भाव आवश्यक ए छे के, जे चरक आदि साधुओ, होम, जाप, नमस्कारादिक, वखतो वखत दिन दिन प्रतें करे छे ते. २ ।। लोकोत्तरिक भाव आवश्यक एछे के, जे शुद्ध जैनना साधुनुं, अथवा शुद्ध श्रद्धावाला श्रावकोनुं, अवश्य कर्त्तव्य एटले वे वखतनुं प्रतिक्रमण करवानुं ते, लोकोतरिक भाव आवश्यक छे ३ € 44 " आजे अमोए, चार " निक्षेप " नो अर्थ, करीने बताव्यो छे ते वधोए मूल सूत्रमां गणधर महाराजाओएज करेलो छे, तेमांथीज आकिंचित मात्र अर्थ करीने बताव्यो छे, पण अमारी मंतिकल्पनाथी करेलो नथी, अगर कोइने संदेह थाय तो बीजाना केहवा उपर भरुसो न राखतां, कोइ पंडितनी पास, सत्रपाठ वंचावी, तेनो अर्थ पण सांभलीने, आपणा मनमां निश्चय करवो, अने जैन मार्गथी भ्रष्ट होय तेमनो संग छोडी, शुद्ध जैन मार्गने आदरखो, ए अमारी सर्व भव्य जीवोप्रति प्रार्थना छे. 66 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat 3 www.umaragyanbhandar.com
SR No.034494
Book TitleDharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAmarvijay Jain Pathshala
Publication Year1907
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
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