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________________ ४१ ४ सूत्र, ए चार द्रव्यार्थिक छे, तेथी ए चार नयो द्रव्यने वलगीने बोध आपनारी छे, छतां तमारा लेखमां ते प्रमाणे विचार थयेलो नथी. जो पृष्ट ८४ मां, (२०) संग्रहनय प्रमाणे ज्ञान-पांच प्रका रनुं ज्ञान छे तोषण समुच्चये एकज ज्ञान कहे ते, । आ संग्रहनय द्रव्यार्थिक छतां जीवद्रव्यना आश्रयविना एकला पांच ज्ञानथी लखीवताव्यां छे, । तेमज ऋजुसूत्र नयमां, छद्मस्थना चार ज्ञानने, एक ज्ञान कही निरर्थक ठरावा प्रयत्न करेला छे, केमके पृष्ट ८६मां, सम्यक्त सहित ९ तनुं ज्ञान ते शब्दनय प्रमाणे लख्युं छे, तो एमां पुछवानुं एछेके शुं ! ऋजुसूत्र द्रव्यार्थिक नयना, चार ज्ञानवालाने, सम्यक्त होतुं नथी, जे त्यां सम्यक्त शब्दजोडीने बताव्यो नही, केमके, चोथु ज्ञान, शुद्ध साधुविना बीजाने थतुंज नथी वास्ते द्रव्यार्थिक ऋजुसूत्र नयना चार ज्ञाननी व्याख्यामां सम्यक्त शब्द अवश्य जोडवानो हतो परंतु तमोए, तेमज ढूंढनी पार्वतीए, द्रव्यार्थिक चार नयोने जूठी, अने उपयोगविनानी ठराववा प्रयत्न करेलो छे, केमके तमोए, तेमज ढूंढfie, चार निक्षेपना विषयमां, द्रव्यार्थिक चार नयना विषयरूप प्रथमना त्रण निक्षेपने, अवस्तु अने उपयोगविनाना लखी बताच्या छे. परंतु तमो तमाराज लेखनो, परस्परना विचारथी, विचार करीजो सोतो, तमोने पण जूठे जूठन मालम पडसें, जूवो के पृष्ट. ८२ - मां, स्थापना निक्षेपे ज्ञान - ज्ञाननी स्थापना करवी ते, । अने द्रव्य निक्षेपे ज्ञान - लखेलां पुस्तक पांना, । आस्थापना, अने द्रव्यरूप बन्ने निक्षेप, द्रव्यार्थिक नयना विपय वाला छे, अने आधार आधेयना भावधी वर्णन करीये तोज योग्य थाय, परंतु तमोए पृष्ट ६३ मां, कागल मुकीने सूत्रनी स्थापना करवी बतावी, पण जो अक्षरोना आधाररूप कागल लख्या होत तोज योग्य थात, अने अही पण, ज्ञाननी स्थापना करवी, पण ते Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034494
Book TitleDharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAmarvijay Jain Pathshala
Publication Year1907
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
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