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________________ ४० 'र्थिक नयने; सत्यनय करके कहती है. ।। आधी विचार करवानी एछे के, ज्ञान छे ते तो आत्माना गुण पर्यायरूप छे, अने ते ज्ञानगुण, पीछली शब्दादिक पर्यायार्थिक ऋण नयोनी साथेज संबंध ध रावे छे, ते एकला ज्ञानगुणने, द्रव्यार्थिक चार नयोमां पण उतारी - ने बतावो लोकेट वधुं अयोग्यपणं छे ? तेनो विचार तमोज एकांतमां बेसीने करी जुवो. केमके, प्रथमनी नैगमादिक वार द्रव्यार्थिक नयो छे ते तो, जीवरुप द्रव्यने वलगीनेज अर्थ आपनारी छे. परंतु ज्ञानगुण एकलाने वलगीने अर्थ प्रकाश करनारी नथी. ते तो पीछली शब्दादिक ऋण नयोज प्रकाश करशे । जेमके, निक्षेपना विषयमां शब्दादिक ऋण नयो, भावने वलगीने, द्रव्यरूप अर्थने प्रकाश करवावाला गण निक्षेपोने अंगीकार नही कर्या. । अने नैगमादिक द्रव्यार्थिक चार नयोए, प्रथमना त्रण निक्षेपोने, मानी लीधा, अने भावरूप गुणमां छूटी गइ हती, तेम अहिं एकला ज्ञानगुणने पण, द्रव्यार्थिक चार नय, अंगीकार करवानी नथी. एम खासपणे समजवानुं छे. । अगर कोइ एकला ज्ञानगुणन साथै लागु पाडवानो प्रयत्न करे, ते तो जैनमार्गनी शैलीथी तदन अजाणज छे । परंतु जैनमार्गनी शैलीनो जाण छे एम कोइ दहाडो पण नही गणाय. आ जैनमार्गना सूक्ष्म विषयोने, सद्गुरुनी पासथी भण्याविना.. जैनमार्गनी शैलीथी विपरीत थयेलाओने पुछीने, पंडिताइ प्रगट न करी शकाय । वास्ते जे जे अर्थो, अने विकल्पो, एकला ज्ञान उपर, सात नयो उतारीने कर्या छे ते, जैन मार्गनी शैलीथी विपरीत पणेज थयेला छे । अगर जो तमो जीवनी साये, ज्ञान गुणने, अभेद भावमानी, सात नयो उतारवा मागता हसो तो, तेपण तमारा करेला विचार प्रमाणे, जूठाज निवडे छे, केमके प्रथमनी नयो जे, नैगम, १ संग्रह, २ व्यवहार, ३ अने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034494
Book TitleDharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAmarvijay Jain Pathshala
Publication Year1907
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
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