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________________ ३९. तमो पृष्ट. ६४ ओ. १ श्री लखोछो के, श्री अनुयोगद्वार सूत्रमां कछे के, पेहला ऋण निक्षेप, अवथ्यु । एटले उपयोग विनाना छे. छेलो चोथो ज आ लोकमां उपयोगी अने परमार्थमां साधनरूपछे । एवं कथन कया हिसाबधी कहीने आव्या ? केमके, पाछलनी जे शब्दादिक aण नयो छे, तेने त्रण निक्षेप अवस्तुरूपे मा नेला छे एमतो तमो पण लखीने बतावोछो, तेथी सिद्ध थाय छे के, पेहली नैगमादिक चार नयोवाला माणसे तो, प्रथमना त्रण निक्षेपोने वस्तुरूपे जमानी लीवेला छे, तो पछी उपयोगविनाना त्रण निक्षेप ले, एम कहीसकसोज केवीरीते ? स्युं प्रथमनी चार नयो जैनमतवालाने माननिक नथी : जे त्रण निक्षेपने निरर्थक ठरावोछो. अमो तो एज कहीये छे के, निक्षेप तो निरर्थक नथी, परंतु परमार्थ समज्याविनाना तमारा मति कल्पनाना विचारोज, निरर्थकपणाथी करेला छे । आ विषयने इहपर न लंबावतां, चार निक्षेपना विषय उपर ऊतरी स्युं त्यारे जोइलइम्युं ॥ - ॥ हवे तमोर जे ज्ञान उपर सातनयो उतारी छे. तेनो विचार किंचित् स्थूलरूपथी करी बतावीये छे.- प्रथम जे ज्ञान ले, ते जीवनो गुण ले. अने सातनयो छे ते, बेविभागथी वहचाइली छे, प्रथमनी नैगमादिक चारनयो द्रव्यार्थिक छे. (एटले द्रव्यपणाने अंगीकार करवा वाली छे ) अने पीछली शब्दादिक त्रण नयो पर्यायार्थिक छे. (एटले गुणादिकने अंगीकार करवावाली छे) अगर तमोने, मारा कहेवा उपर भरोसो न आवतो होय तो, वो सत्यार्थचंद्रोदय पृष्ट ६ मां ढूंढनी पार्वती पण लखे छे के, पहिली चार नय द्रव्य अर्थको प्रमाण करती है. । अने पीछली त्रण पर्याया Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034494
Book TitleDharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAmarvijay Jain Pathshala
Publication Year1907
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
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