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? नाम, २ स्थापना, अने ३ द्रव्य एत्रण निक्षेपने अवस्तु माने छे, ए तमारु लखेलूं अमो कबूल करीये छे, परंतु ? नैगमनय, २संग्रहनय, व्यवहारनय, अने ४ऋजुसुत्रनय,ए चार नयवाला माणस तो, नाम, स्थापना, अने द्रव्य,एत्रण निक्षेपने वस्तूरूपथी माने छे, एम सिद्ध पणे तमारे पण मानवूज पडशे. ए सिवाय बीजी गतिज नथी. । अगर जो. पहेली चार नयो. १ नाम, २ स्थापना, अने ३ द्रव्य,ए त्रण निक्षेपने अंगीकार करनारी न होततो, शब्दादिक त्रण नयथी, त्रण निक्षेपनो निषेध न करता, नैगमादि साते नयथी निषेध, शास्त्रकार करीने वतावताज, परंतु तेवी रीते न करवाथी निश्चय थयो के, पहेली नौगमादि चार नयोए, नाम,स्थापना,अने द्रव्य, एत्रणे निक्षेपने मानी लीधेलाज छे. । ज्यारे प्रथमनी चार नयोने, नाम, स्थापना, अने द्रव्य, ए त्रण निक्षेपो कबूल छे. त्यारे तो जैन मतने अंगीकार करवा वाला पुरुषोंने पण, मान्य करवाज पडशे, केमके जैनोने तो साते नयो प्रमाणरूपे छे, जेमके डावी. अने जमणी आंखमां निरर्थक कयी, अथवा पांच आंगलियोमाथी कइ आंगुली निरर्थक, एमांधी निरर्थ एकपण गणाय नहि. नेम साते नयोमाथी एकपण नय, जैन मतवालाने निरर्थक रूपे नथी. । अगर निरर्थकपणे गणे तेने मिथ्यात्वपणानी प्राप्ति थाय, परंतु सम्यक्तपणानी प्राप्ति छे एम सिद्ध नही थइसके. अने एज अर्थने पुष्टि करनारु श्री अनुयोगद्दार नामना सूचना अंतमां सूत्र कहुं छे के, (तसव्वनय विसुद्ध जंचरण गुणडिओ साह)अर्थ-ते सर्व नय करके विश्रुद्ध जो चारित्र गुणमा रहेलो होय तेज साधु जाणवो आ. सिद्धांतना वचनथी पण, जैनमत अंगीकार करवावालाने। तो, साते नयो मान्यरूप ज छे. । तो पछी
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